बचपन की शरारतें मनभावन होती हैं, 'सूरदास
के पद के अदि आधार पर इस कथन को
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वे अपने बालपन में माखन चुराने जाते थे जबकि उनके घर में माखन की कोई कमी नहीं थी। लेकिन उनका यही नटखटपन माता यशोदा को, गोपियों को सबको बहुत भाता था। कभी उनकी चोटी न बढ़ने की शिकायत होती तो कभी बलदाऊ द्वारा तंग करने की। इन बालसुलभ चंचलता और शरारतों को देखकर ही यह कथन कहा जा सकता है कि बालपन की शरारतें मनभावन होती हैं।
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वे अपने बालपन में माखन चुराने जाते थे जबकि उनके घर में माखन की कोई कमी नहीं थी। लेकिन उनका यही नटखटपन माता यशोदा को, गोपियों को सबको बहुत भाता था। कभी उनकी चोटी न बढ़ने की शिकायत होती तो कभी बलदाऊ द्वारा तंग करने की। इन बालसुलभ चंचलता और शरारतों को देखकर ही यह कथन कहा जा सकता है कि बालपन की शरारतें मनभावन होती हैं।
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