'बचपन से दूर होते बच्चे
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Explanation:चपन नाम से ही पता चलता है बचपन कितना मासूम और सबसे अच्छा होता है |
सच कहें तो बचपन ही वह वक्त होता है, जब हम दुनियादारी के झमेलों से दूर अपनी ही मस्ती में मस्त रहते हैं। बचपन एक ऐसी उम्र होती है, जब बगैर किसी तनाव के मस्ती से जिंदगी का आनन्द लिया जाता है।
यह भी सच है सब के नसीब में बचपन नहीं होता , बचपन की मस्ती , यादें सब के पास नहीं होती |
बहुत सारे बच्चों को बचपन में ही बहुत सारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है |
कई बच्चों के माँ-बाप उन्हें छोड़ देते है या कई बार भगवान ही उनके माँ-बाप को अपने पास बुला लेते है | ऐसे समय में बच्चों को खुद ही अपना ध्यान रखना पड़ता है | ऐसे बच्चों को पता नहीं होता बचपन क्या होता है? खेलना क्या होता है? स्कूल जाने का पता नहीं होता? मस्ती करना क्या होता है ?
ऐसे बच्चे तो शुरू से ही अपने की जीवित रखने के लिए बहार काम पर लग जाते है | दुकान पर लग जाते है , होटल में काम करने लग जाते है |
आज के समय में बचपन में बहुत अंतर आ गया है |
पहले दादा-दादी के साथ बीतता था और अब बचपन फोन , टीवी आदि से बीतता है जिसमें कोई एहसास नहीं होता है बचपन का अर्थ क्या है |
इस तरह बच्चे बचपन से दूर होते है |
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इस तरह बच्चे बचपन से दूर होते है |
बचपन जीवन का एक ऐसा हिस्सा है जो बेहद नाजुक दौर है और इस दौर में गुजरे अनुभवों का असर ताउम्र रहता है।
बचपन का दौर अक्सर मौज-मस्ती, बेपरवाही, खेलकूद, हंसी-ठिठोली से जोड़कर देखा जाता है। आपने कई मर्तबा लोगों को यह कहते सुना होगा कि बचपन का दौर उम्र का सबसे सुनहरी हिस्सा है जिसमें व्यक्ति अपने जीवन का सबसे आनंदमय समय बिताता है। बचपन की यादों पर कई फिल्मी गीत भी बने और खूब हिट भी हुए हैं। परंतु वर्तमान परिवेश में बचपन भी तनाव के प्रभावों से अछूता नहीं रहा है।
टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग और टीवी चैनलों के निरंकुश कंटेंट के चलते बच्चे तेजी से बड़े हो रहे हैं। एक सर्वे के अनुसार बीते दशक में बच्चों के मानसिक और शारिरिक विकास के बैलेंस में खतरनाक असंतुलन देखा गया है।
बच्चे दिमागी तौर पर बेहद जल्दी बड़े हो रहे हैं जबकि शारिरिक विकास के क्रम में वे पिछड़ रहे हैं। जिन मानसिक अवस्थाओं से वे गुजर रहे हैं, शारिरिक तौर पर वे इसे हैंडल कर पाने में सक्षम नहीं हैं।
यूट्यूब, वीडियो गेम्स, इंटरनेट आदि ने बच्चों को उनके बचपन से दूर कर दिया है। इंटरनेट के इस मायाजाल में उलझे बच्चे यह समझ ही नहीं पाते कि कब वे बचपन से दूर हो गए।