बढता भौतिक विज्ञान घटता मानवीय मूल्य
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प्रस्तावना–
भारतीय मनीषियों ने मनुष्य और पशु के बीच विभेद का आधार बताते हुए कहा है-
आहार निद्रा भय मैथुनं च, सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम्।
धर्मोहितेषामधिको विशेषो, धर्मेण हीना पशुभिः समानाः॥
अर्थात् भोजन, शयन, भय, कामेच्छा आदि मनुष्यों और पशुओं में एक समान है। धर्म ही वह विशिष्ट गुण है जो मनुष्य को पशु से भिन्न सिद्ध करता है। धर्म का अर्थ है–मानवीय कर्तव्यों का बोध और उनको जीवन में धारण करना। अत: हमारे यहाँ धर्म का अर्थ कोई उपासना–प्रणाली नहीं, अपितु सत्य, करुणा, उपकार, प्रेम, मैत्री, उदारता, क्षमा आदि मानवीय मूल्यों का धारण किया जाना है। मानवीय मूल्यों से रहित मनुष्य और पशु
में कोई अन्तर नहीं।
भौतिकतावादी विचारधारा एवं मानवीय मूल्य–
मनुष्य भी अन्य जीवों की भाँति एक भौतिक प्राणी है। अन्य प्राणियों के समान खाना, पीना, सोना, कामेच्छा–पूर्ति आदि उसकी भी भौतिक आवश्यकताएँ हैं। भौतिक दृष्टि से इन इच्छाओं की पूर्ति ही जीने का उद्देश्य है। यदि केवल इसी को मानव–जीवन का ध्येय माना जाय तो जीवन–मूल्यों की बात करना ही व्यर्थ है। जिसे मानव समाज सभ्यता और संस्कृति कहकर गर्व से फूला नहीं समाता, उसकी संरचना के आधारस्तम्भ दधीचि, रंतिदेव, सुकरात, ईसा, अशोक, गौतम और गांधी जैसे महापुरुष हैं, जो मानवीय–मूल्यों के ध्वजवाहक
भौतिक विज्ञान और मनुष्य-
आज की दुनियाँ विचित्र नवीन,
प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन।
प्राय: विज्ञान और मानवीय मूल्यों को एक–
दूसरे का विरोधी दर्शाया जाता है। सच तो यह है कि आदिकाल से ही विज्ञान और मानवीय मूल्य मनुष्य के जीवन–साथी रहे हैं। आग जलाने से लेकर परमाणु बम बनाने तक की यात्रा मनुष्य के वैज्ञानिक विकास की कहानी है। विज्ञान की असीमित शक्ति मनुष्य के हाथ में है परन्तु इसी के समानान्तर मनुष्य ने जीवन–मूल्यों का
भी विकास किया है।