Hindi, asked by dubeynamrata299, 7 hours ago

bekari ki samasya hindi ka nibandh hai in 200 words​

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Answered by janbi73
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विदेशी भारत को भिखारियों का देश कहते हैं। कोई भी किसी यात्री भारत में आकर भिखारियों से तंग हो जाता हैं। भिखारी इतना पीछा करते हैं कि घबराकर वे भारत न जाने की प्रतिज्ञा का बैठते हैं।

भारत में प्रातःकाल उठते ही आपको दरवाजे पर भिक्षुक के दर्शन हो जाते हैं। वे अनेकों प्रकार की वेश-भूषा धारण करके, बाजा बजाकर, गाय बैलों को साथ लेकर, गाना गाते हुए, भीख मांगने के लिए निकल पड़ते हैं। कुछ परिवारों का तो व्यवसाय ही भीख मांगना है। सभी सार्वजनिक स्थानों पर, बस स्टैण्ड, रेल्वे स्टेशन, मंदिर. सिनेमा घरों के आस पास भिखारियों के झुण्ड के झुण्ड आपको मिल जाएंगे।

भिखारी समस्या के मूल में भारतीय संस्कृति का प्रभाव है। हमारे यहाँ प्रातः उठकर दान देना, भूखों को भोजन एवं नंगों को वस्त्र दान पुण्य कार्य माना गया है। भिखारी वृन्द इस भावना का लाभ उठाते हैं। पुण्य संचय के लिए दान-दक्षिणा देकर भारतीय समाज भिखारियों को भीख मांगने के लिए उत्साहित करता है।

यही भावना शारीरिक रूप से हृष्ट पुष्ट लोगों को भी आलसी बना देती है। कई बार देखा गया है कि किसी भिक्षुक के निधन हो जाने के बाद उसके पास पर्याप्त सम्पत्ति पाई गई है।

शारीरिक रूप से अपंग व्यक्ति यदि भीख मांगे तो कुछ भी अनुचित नहीं। उन्हें भीख देना अवश्य पुण्य कार्य है। पर हृष्ट पुष्टों को भिक्षा देना अधर्म है। ऐसे लोग समाज पर कलंक हैं, जो हृष्ट पुष्ट होकर भी भीख मांगते हैं। यदि कभी आपका उनसे सामना हो जाए तो उन्हें भीख न देकर दुत्कार कर भगा देना चाहिए।

भारत में ऐसे भी गिरोह हैं, जो भिक्षाटन को व्यवसाय बनाए हुए के भीख मांगने के साधन भी अत्यंत क्रूर हैं। इन गिरोहों द्वारा छोटे बालकों का अपहरण कर लिया जाता है। उन्हें अपंग कर भीख मांगने के लिए विवश कर दिया जाता है। अनेकों एँ पाकर वे भीख मांगने को विवश हो जाते हैं। उन्हें प्राप्त भीख के सरदार को देनी होती है। बदले में केवल अति सामान्य अपर्याप्त भोजन ही उन्हें प्राप्त होता है। बड़े-बड़े शहरों में ऐसे कई संगठनों का भण्डा फोड़ हो चुका है।

बेकारी की समस्या भी कुछ लोगों को भीख मांगने के लिए विवश कर देती है। पेट भरने के लिए यदि कोई नौकरी या मजदूरी न मिले तो विवश होकर व्यक्ति भीख माँगने लगता है। अब जनता में भी इस दोष को दूर करने की समझ आगई है। वे हृष्ट-पुष्ट लोगों को भिक्षा नहीं देते। इससे कुछ हद तक ऐसे लोग हतोत्साहित हो गए हैं। इस समस्या के निवारण के लिए अपंग लोगों को सरकार द्वारा आश्रय स्थल बनवाए जाने चाहिए। वहाँ उनको स्थापित करके उनसे कुछ हस्तकला आदि के कार्य लेने चाहिए। उसकी आमदनी से इन आश्रय स्थलों का व्यय उठाना चाहिए।

सार्वजनिक स्थानों पर भीख मांगना वर्जित कर दिया जाना चाहिए। यदि कोई भिक्षुक सार्वजनिक स्थान पर भीख माँगता दिखाई दे तो उसे दण्डित किया जाए।

बड़े बड़े शहरों के उन गिरोहों को जो बालकों को अंग भंग करके भिक्षा मांगने के लिए विवश करते हैं, गुप्तचरों द्वारा पता लगा कर पुलिस द्वारा पकड़वाना चाहिए। बालकों के संरक्षकों का पता लगाकर उन्हें उनके घर भेजदेना चाहिए। किसी भी नगर में ऐसे गिरोहों का रहना सरकार की अकर्मण्यता का द्योतक है।

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