Hindi, asked by sharmaparveen935, 6 months ago

Berojgari per nibhebd​

Answers

Answered by tanishka785
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Explanation:

रूपरेखा-

प्रस्तावना,

भारत में बेरोजगारी का स्वरूप,

बेरोजगारी के कारण,

निवारण के उपाय,

उपसंहार।

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना-

बेरोजगारी भारतीय युवावर्ग के तन और मन में लगा हुआ एक घुन है, जो निरन्तर उसकी क्षमता, आस्था और धैर्य को खोखला कर रहा है। प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में बढ़ते बेरोजगारों का समूह देश की अर्थव्यवस्था के दिवालियापन और देश की सरकारों के झूठे वायदों की करुण कहानी है। सच तो यह है कि ‘मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों-ज्यों दवा की आपने।’

भारत में बेरोजगारी का स्वरूप-

देश में बेरोजगारी के कई स्वरूप देखने को मिलते हैं। एक है आंशिक या अल्पकालिक बेरोजगारी और दूसरा पूर्ण बेरोजगारी। आंशिक. बेरोजगारी गाँवों में अधिक देखने को मिलती है।

वहाँ फसल के अवसर पर श्रमिकों को काम मिलता है, शेष समय वे बेरोजगार से ही रहते हैं। निजी प्रतिष्ठानों में कर्मचारी की नियुक्ति अनिश्चितता से पूर्ण रहती है। बेरोजगारी का दूसरा स्वरूप शिक्षित बेरोजगारों तथा अशिक्षित या अकुशल बेरोजगारों के रूप में दिखाई देता है।

बढ़ती बेरोजगारी-आज प्रत्येक परिवार में कुछ व्यक्ति बेरोजगार होते हैं। इन बेरोजगारों का भार परिवार के उन एक-दो सदस्यों पर पड़ता है, जो कुछ कमाते हैं। इस प्रकार निर्धन व्यक्ति और अधिक निर्धन बनता जाता है।

यद्यपि उद्योग-धन्धों का देश में काफी विस्तार हुआ है किन्तु साथ ही कुटीर उद्योगों के विनाश के कारण बेरोजगारी की दशा में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हो पाया है।

प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में विद्यालयों से निकलने वाले शिक्षित बेरोजगार समस्या को चिन्ताजनक बनाते जा रहे हैं। कृषि की निरन्तर उपेक्षा के कारण गाँवों से शहरों की ओर पलायन हो रहा है। बेरोजगारी अपराधी मानसिकता की वृद्धि का कारण बन रही है।

बेरोजगारी के कारण-भारत में दिनों-दिन बढ़ती बेरोजगारी के भी कुछ कारण हैं। इन कारणों का निम्नवत् वर्गीकरण किया जा सकता है-

(क) जनसंख्या वृद्धि-यह बेरोजगारी समस्या का मुख्य कारण है। जनसंख्या के घनत्व की दृष्टि से चीन के बाद हमारे ही देश का नाम आता है। जनसंख्या तो बढ़ती है, किन्तु रोजगार के स्रोत नहीं बढ़ते। अत: ज्यों-ज्यों जनसंख्या बढ़ती है, त्यों-त्यों बेरोजगारों की संख्या में भी वृद्धि होती जा रही है।

(ख) दूषित शिक्षा प्रणाली-आज की शिक्षा प्रणाली में व्यावसायिक परामर्श की कोई व्यवस्था अभी संतोषजनक नहीं है। आज का बालक जो शिक्षा पाता है, वह उद्देश्यरहित होती है। आजकल अनेक रोजगारोन्मुख पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं, किन्तु अत्यन्त महँगे होने के कारण सामान्य छात्र की पहुँच से बाहर हैं। इस प्रकार वर्तमान शिक्षा प्रणाली भी बेकारी की समस्या का मुख्य कारण है।

(ग) उद्योग नीति-सरकार की उद्योग नीति भी इस समस्या को विकराल बना रही है। हमारे यहाँ औद्योगिकीकरण के रूप में बड़े उद्योगों को बढ़ावा दिया जाता रहा है। आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति की दृष्टि से यह एक अच्छा कदम है, किन्तु मशीनीकरण के कारण बेकारी की समस्या और बढ़ गयी है। लघु अथवा कुटीर उद्योगों के विकास के लिए जो प्रयास किये जा रहे हैं, वे नितान्त अपर्याप्त हैं।

वर्तमान सरकार ने मनरेगा योजना को व्यवस्थित बनाकर, मुद्रा, स्टार्टअप, स्टेण्ड अप, जनधन खाता योजना आदि के द्वारा, बेरोजगारी की समस्या के हल के लिए सार्थक और पारदर्शी प्रयास किए गए हैं। अभी परिणाम भविष्य के गर्भ में हैं।

(घ) आरक्षण नीति-आज आरक्षण के नाम पर समाज के एक बड़े शिक्षित वर्ग की दुर्दशा हो रही है। राजनीतिक स्वार्थों के कारण शिक्षित बेरोजगारों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है।

(ङ) स्वरोजगार योजनाओं का दुरुपयोग-जवाहर रोजगार योजना, नगरीय रोजगार योजना, स्वर्ण जयन्ती योजना आदि सरकारी योजनाएँ केवल स्वार्थी और ऊपर तक पहुँच रखने वाले लोगों की जेबें भरती रही हैं। उनका लाभ वास्तविक पात्रों को मिल पाना बड़ा कठिन रहा है। अब सरकारी योजनाओं के लाभ पात्रों के खाते में सीधे पहुँचाकर इस भ्रष्ट परंपरा को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा है।

निवारण के उपाय-किसी समस्या का कारण जान लेने के बाद निवारण का मार्ग स्वयं खुल जाता है। आज सबसे अधिक आवश्यकता सामाजिक क्रान्ति लाने की है। हम प्राचीन व्यवस्थाओं और मान्यताओं को नये युग के अनुकूल ढालें, श्रम का सम्मान करें, यह परमावश्यक है। जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण भी आज के युग की माँग है, किन्तु यह कार्य केवल प्रशासनिक स्तर से सम्भव नहीं हो सकता। सरकार को मुख्य रूप से दो बातों पर ध्यान देना चाहिए-

शिक्षा व्यवसाय केन्द्रित हो। शिक्षार्थियों को शिक्षा के साथ-साथ उचित परामर्श भी दिया जाय।

लघु एवं कुटीर उद्योगों को विकसित किया जाय और सभी रोजगारपरक योजनाएँ व्यावहारिक हों।

उपसंहार-

आज प्रत्येक राजनीतिक दल अपने चुनावी घोषणा-पत्र में बेकारी की समस्या के समाधान का आश्वासन देता है। कोई-कोई दल यह भी कहता है कि हम प्रत्येक व्यक्ति को रोजगार देंगे। यदि यह सम्भव न हुआ तो प्रत्येक बेरोजगार व्यक्ति को बेरोजगारी भत्ता देंगे। किन्तु बेरोजगारी भत्ता देने से ही समस्या का समाधान नहीं होगा और फिर यह सब कहने की ही बातें हैं। इस समस्या का हल तब तक नहीं होगा जब तक कि कोई ठोस और सुनियोजित कार्यक्रम लागू नहीं होता।

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