Math, asked by vinayakrathod45, 11 months ago

beti bachao beti padhao Hindi nibandh​

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Answered by dheerajvrb72
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Answered by Manideep1105
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जहाँ नारियों को सम्मान दिया जाता है वहाँ साक्षात् देवता निवास करते हैं ये आपकी और मेरी कही हुई बात नहीं हैं वरन् वेद वाक्य है, फिर भी इस ध्रुव सत्य पर उपेक्षा के बदल सदियों से मँडराते आ रहे हैं। विषय के आधुनिक पक्ष की ओर विचार करें तो मुझे एक तरफ़ यह जानकर बड़ी प्रसन्नता होती है कि नारी सशक्तीकरण, लाड़ली योजना, बेटी-बचाओ,बेटी पढ़ाओ आदि योजनाएँ लागू की जा रही हैं जो साबित करती है कि अभी भी समाज के ऊँचे पदों पर बुद्धिजीवी लोग आसीन हैं जो सृष्टि की संरचना में आधीभूमिका निभाने वाली महीयशी महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए कार्यरत हैं दूसरी तरफ़ यह सोचकर मुझे काफ़ी दु:ख होता है किभारत जैसे देश में ऐसे भी लोग हैं जिन्हें यह बताने की ज़रूरत है कि नारियों को भी उनका अधिकार मिलना चाहिए।

उनलोगों के ज़हन में ये साधारण-सी बात क्यों नहीं आती कि उनके अस्तित्व में आधी साझेदारी स्त्री की ही है और अगर वो इस विषय पर थोड़ा और विचार करें तो वे यह भी जान पाएँगे कि अगर उनके व्यक्तित्व में कहीं भी कुछ भी कमी रह गई है तो इसके पीछे का एकमात्र कारण उनसे जुड़ी स्त्रियों के अधिकारों का हनन है। आज के इस विकासशील देश में जहाँ मंगलयान की सफलता पर पूरा विश्व भारत को शुभकामनाएँ दे रहा है। उसी समय एक सवाल मुंह उठाता है कि क्या भारत केवल तकनीकी क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है? क्या नारियों के प्रति सोच-विचार की मानसिकता में प्रगति शिथिल पड़ी हुई है? लिंगानुपात के बढ़ते असंतुलनको देखकर भी हमारी आँखें नहीं खुलती। पिछले 14 वर्षों से सीबीएसई की बोर्ड परीक्षाओं में लड़कियाँ ही अव्वलआ रही हैं।

यहाँ तक कि विश्वविख्यात मनोवैज्ञानिक सिग्मंड फ्रोएड ने अपने प्रयोगों से सिद्ध कर दिया है कि स्त्रियाँ पुरुषों की तुलना में अधिक मेहनती, धैर्यवान, अहिंसक और ईमानदार होती हैं और ये सभी गुण उन्नति के मार्ग में मील का पत्थर साबित होती है। ये सब जानने के बाद भी हम नारियों के साथ अमानवीय व्यवहार कैसे कर सकते हैं? क्या ऐसा कृत्य पाशविकता का पर्याय नहीं है?

अब आवश्यकता है कि हम नज़र उठा कर देखें उन देशों की तरफ़ जो विकसित हैं और पाएँगे कि सभी विकसित देशों में एक बात सामान्य है कि वहाँ नारियों को पुरुष के समान अधिकार दिया जाता है। शायद ऐसे ही कुछ कारण हैं जिस वजह से हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर मोदी जी ने 22 जनवरी 2015 को बेटी-बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत की है।

भारत देश पौराणिक संस्कृति के साथ-साथ महिलाओं के सम्मान और इज्जत के लिए जाना जाता था। लेकिन बदलते समय के अनुसार हमारे देश के लोगों की सोच में भी बदलाव आ गया है। जिसके कारण अब बेटियों और महिलाओं के साथ हैं एक समान व्यवहार नहीं किया जाता है।

लोगों की सोच किस कदर बदल गई है कि आए दिन देश में कन्या भ्रूण हत्या और बलात्कार जैसे मामले देखने को मिलते रहते हैं। जिसके कारण हमारे देश की सभी इतनी खराब हो गई है कि दूसरे देश के लोग हमारे भारत देश में आने से झिझकते हैं।

हमारे देश के लोगों ने मिलकर हमारे देश में पुरुष प्रधान नीति को अपना लिया है जिसके कारण देश की बेटियों के हालात गंभीर रूप से खराब हो गए हैं। उनके साथ लैंगिग भेदभाव किया जा रहा है और ना ही उन्हें उचित शिक्षा दी जा रही है।

जिसके कारण वह हर क्षेत्र में पिछड़ गई है। उनकी आवाज को इस कदर दबा दिया गया है कि उन्हें घर से बाहर निकलने की आजादी तक नहीं दी जाती है। इस गंभीर मुद्दे को लेकर हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने एक नई योजना का प्रारंभ किया जिसका नाम Beti Bachao Beti Padhao रखा गया।

इस योजना के अनुसार बेटियों की शिक्षा के लिए उचित व्यवस्था की गई है और लोगों की सोच को बदलने के लिए जगह-जगह इसका प्रचार प्रसार किया जा रहा है जिससे लोग बेटी और बेटियों में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करें।

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