बगरे झलक जाल हर होही नयन-कोर ला रोके। स्नेह शून्य हो ही जेहर अब अंजन होके।। मधु सेवन बिन होही जेहर भू विलास बिसराये। ऐसे बाम नयन मृगनयनी के तैं हर सब जाये।। फरक फरक उठ ही ऊपर अंग, शोभा माही कैसे। मछली के डोला में डोलत नील कमल हो जैसे।।"
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HIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIII
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