भू आकृति विज्ञान का आपदा में अनुप्रयोग बताइए
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भूविज्ञान अनुप्रयोग
भूविज्ञान अनुप्रयोग
भूवैज्ञानिक / भू-आकृति विज्ञान मानचित्रण
सभी सुदूर संवेदन अनुप्रयोग परियोजनाओं के लिए उपग्रह चित्रों का उपयोग भूवैज्ञानिक और भू-आकृति विज्ञान मानचित्रण के लिए प्राथमिक इनपुट होते हैं। जल विज्ञान, भू-जोखिम, भू-पर्यावरण और भू-तकनीकी अध्ययन के लिए व्यापक लिथोलॉजिकल इकाइयों की पहचान और अद्यतन, दोषों व फ्रैक्चरों का मानचित्रण आवश्यक हैं। इसी तरह, पर्यावरण पर भू-आकृति विज्ञान पर्यावरण पर दीर्घकालिक और अल्पकालिक प्रभाव दोनों के संदर्भ में स्थलाकृति की प्रतिक्रिया के वर्तमान और ऐतिहासिक व्यवहार को समझने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है। एनआरएससी ने भारत के भौगोलिक सर्वेक्षण के सहयोग से 1:50,000 पैमाने पर राष्ट्रीय भूरूपाकृति एवं संरेखण परियोजना (एनजीएलएम) के अंतर्गत भूमि प्रारूप जेनेसिस के आधर पर एक नई वर्गीकरण प्रणाली विकसित की गई है। 11 जेनेटिक वर्गों के साथ कुल 417 किस्म के भूमिप्रारूपों का मानचित्रण किया गया है।
भूमिगत जल की संभावना वाले मानचित्र
पेयजल प्रौद्योगिकी मिशन भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री (1986) द्वारा शुरू किए गए पाँच प्रौद्योगिकी मिशनों में से एक है। इस पहल के तहत एनआरएससी ने कार्यप्रणाली विकसित की है और पूरे देश के लिए 1: 50,000 पैमाने पर भूमिगत जल की संभावना वाले मानचित्र तैयार किये हैं, / भू-आकृति विज्ञान मानचित्रण
सभी सुदूर संवेदन अनुप्रयोग परियोजनाओं के लिए उपग्रह चित्रों का उपयोग भूवैज्ञानिक और भू-आकृति विज्ञान मानचित्रण के लिए प्राथमिक इनपुट होते हैं। जल विज्ञान, भू-जोखिम, भू-पर्यावरण और भू-तकनीकी अध्ययन के लिए व्यापक लिथोलॉजिकल इकाइयों की पहचान और अद्यतन, दोषों व फ्रैक्चरों का मानचित्रण आवश्यक हैं। इसी तरह, पर्यावरण पर भू-आकृति विज्ञान पर्यावरण पर दीर्घकालिक और अल्पकालिक प्रभाव दोनों के संदर्भ में स्थलाकृति की प्रतिक्रिया के वर्तमान और ऐतिहासिक व्यवहार को समझने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है। एनआरएससी ने भारत के भौगोलिक सर्वेक्षण के सहयोग से 1:50,000 पैमाने पर राष्ट्रीय भूरूपाकृति एवं संरेखण परियोजना (एनजीएलएम) के अंतर्गत भूमि प्रारूप जेनेसिस के आधर पर एक नई वर्गीकरण प्रणाली विकसित की गई है। 11 जेनेटिक वर्गों के साथ कुल 417 किस्म के भूमिप्रारूपों का मानचित्रण किया गया है।
भूमिगत जल की संभावना वाले मानचित्र
पेयजल प्रौद्योगिकी मिशन भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री (1986) द्वारा शुरू किए गए पाँच प्रौद्योगिकी मिशनों में से एक है। इस पहल के तहत एनआरएससी ने कार्यप्रणाली विकसित की है और पूरे देश के लिए 1: 50,000 पैमाने पर भूमिगत जल की संभावना वाले मानचित्र तैयार किये हैं,।
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