भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कडहु सही रिस रोकी।।
सुर मडिसुर हरिजन अरू गाई। हमारे कुल इन्ह पर न सुराई।।
बधे पापु अपकीर्ति हारे। मारतहू पा परिअ तुम्हारे।।
कोटि कुलिस सम वचनु तुम्हारा, व्यर्थ धरहु धनु बाण कुटारा।।
1- प्रस्तुत पंक्तियाँ किसने कही?
ग- परशुराम
छ- कौशिक
2- भृगुसुत किसके लिए प्रयुक्त हुआ है।
क- परशुराम
ख-बाइमण
घ- काशिक
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भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी
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1- लक्ष्मण
२- परशुराम
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प्रस्तुत पंक्तियाँ लक्ष्मण ने कही।
भृगुसुत परशुराम को कहा जाता है।
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