भाग्य और पुरुषार्थ पर निबंध
Answers
☣☣ भूमिका ☣☣
★ ★ ★ 【 परिश्रम अथवा कर्म का महत्व श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन को गीता के उपदेश द्वारा समझाया था । उनके अनुसार:】★ ★ ★
■ ■ ■ '' कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन: ।” ■ ■ ■
➡➡ मनुष्य के जीवन में परिश्रम का बहुत महत्व होता है। हर प्राणी के जीवन में परिश्रम का बहुत महत्व होता है। इस संसार में कोई भी प्राणी काम किये बिना नहीं रह सकता है। प्रकृति का कण-कण बने हुए नियमों से अपना-अपना काम करता है। चींटी का जीवन भी परिश्रम से ही पूर्ण होता है। मनुष्य परिश्रम करके अपने जीवन की हर समस्या से छुटकारा पा सकता है| सूर्य हर रोज निकलकर विश्व का उपकार करता है।
✡✡ परिश्रम और भाग्य :- ✡✡
➡➡ कुछ लोग परिश्रम की जगह भाग्य को अधिक महत्व देते हैं। ऐसे लोग केवल भाग्य पर ही निर्भर होते हैं। वे भाग्य के सहारे जीवन जीते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता है कि भाग्य जीवन में आलस्य को जन्म देता है और आलस्य जीवन मनुष्य के लिए एक अभिशाप की तरह होता है। वे लोग यह समझते हैं कि जो हमारे भाग्य में होगा वह हमें अवश्य मिलेगा। वे परिश्रम करना व्यर्थ समझते हैं।
भाग्य का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है लेकिन अलसी बनकर बैठे हुए असफलता के लिए भगवान को कोसना ठीक बात नहीं है। अआलसी व्यक्ति हमेशा दूसरों के भरोसे पर जीवन यापन करता है। वह अपने हर काम को भाग्य पर छोड़ देता है।
☣☣ परिश्रम का महत्व : ☣☣
➡➡ परिश्रम का बहुत अधिक महत्व होता है। जब मनुष्य के जीवन में परिश्रम खत्म हो जाता है तो उसके जीवन की गाड़ी रुक जाती है। अगर हम परिश्रम न करें तो हमारा खुद का खाना- पीना , उठना-बैठना भी संभव भी नहीं हो पायेगा। अगर मनुष्य परिश्रम न करे तो उन्नति और विकास की कभी कल्पना ही नहीं की जा सकती थी। आज के समय में जितने भी देश उन्नति और विकास के स्तर पर इतने ऊपर पहुंच गये हैं वे भी परिश्रम के बल पर ही ऊँचे स्तर पर पहुँचे हैं।
☣☣ परिश्रम के लाभ :- ☣☣
➡➡ परिश्रम से मनुष्य के जीवन में अनेक लाभ होते हैं। जब मनुष्य जीवन में परिश्रम करता है तो उसका जीवन गंगा के जल की तरह पवित्र हो जाता है। जो मनुष्य परिश्रम करता है उसके मन से वासनाएं और अन्य प्रकार की दूषित भावनाएँ खत्म हो जाती हैं। जो व्यक्ति परिश्रम करते हैं उनके पास किसी भी तरह की बेकार की बातों के लिए समय नहीं होता है। जिस व्यक्ति में परिश्रम करने की आदत होती है उनका शरीर हष्ट-पुष्ट रहता है।
☣☣ उपसंहार :- ☣☣
➡➡ जो व्यक्ति परिश्रमी होते हैं वे चरित्रवान , ईमानदार , परिश्रमी , और स्वावलम्बी होते हैं। अगर हम अपने जीवन की , अपने देश और राष्ट्र की उन्नति चाहते हैं तो आपको भाग्य पर निर्भर रहना छोडकर परिश्रमी बनना होगा। जो व्यक्ति परिश्रम करता है उसका स्वास्थ्य भी ठीक रहता है।आज के देश में जो बेरोजगारी इतनी तेजी से फैल रही है उसका एक कारण आलस्य भी है। बेरोजगारी को दूर करने के लिए परिश्रम एक बहुत ही अच्छा साधन है। मनुष्य परिश्रम करने की आदत बचपन या विद्यार्थी जीवन से ही डाल लेनी चाहिए। परिश्रम से ही किसान जमीन से सोना निकालता है। परिश्रम ही किसी भी देश की उन्नति का रहस्य होता है।
"भाग्य और पुरुषार्थ"
भाग्य और पुरुषार्थ दो ऐसे शब्द हैं, जो व्यक्ति की जीवन को बदल देते हैं। पुरुषार्थ अर्थात परिश्रम या मेहनत। जो व्यक्ति अपने जीवन में परिश्रम करता है वह अपने जीवन की हर ऊंचाइयों को प्राप्त करता है। जो भाग्य के सहारे बैठा रहता है और कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता। भाग्य कोई पूर्व निर्धारित नहीं होता, यह हमारे कर्म के आधार पर बनता है। हम जिस तरह का कर्म करेंगे वैसा ही फल हमें मिलेगा। हमारे नीति शास्त्रों में भी लिखा है कि परिश्रम करने से ही सब कार्य सफल होते हैं न की इच्छाओं से, जिस प्रकार सोए हुए शेर के मुंह में अपना प्रवेश नहीं कर सकता।
इस धरा पर इंसान ने जितना भी विकास किया है, अगर वह परिश्रम न करता तो क्या यह सब संभव होता? क्या वह भाग्य के भरोसे बैठे रहते तो यह सब कार्य हो पाता? अर्थात नहीं। भाग्य के सहारे केवल वही व्यक्ति बैठता है, जो अपना कर्म ठीक ढंग से नहीं करता है। गीता में भगवान श्री कृष्ण का है कि "हमें अपना कर्म करने में अधिकार रखना चाहिए"। अपने कर्मों के द्वारा ही व्यक्ति महान बनता है। आज महात्मा गांधी को पूरा विश्व नमन करता है क्योंकि वह अपना हर कार्य स्वयं करना पसंद करते थे। हमें भाग्य के बजाय कर्म पर विश्वास रखना चाहिए।
आज हर व्यक्ति पुरुषार्थ करें तो कोई भी समस्या उत्पन्न नहीं हो सकती है। एक किसान खेतों में काम करके मेहनत से अन्न उगाता है और सब का पेट भरता है। इसी तरह हर व्यक्ति अपना काम भी मेहनत और ईमानदारी के साथ करें तो देश उन्नति के पथ पर बढ़ सकता है।
लेकिन आज विडंबना यह है कि कोई भी व्यक्ति पुरुषार्थ नहीं करना चाहता और परिश्रम से बचना चाहता है। आज का हर व्यक्ति बिना परिश्रम की ही धन पाने की चाह रखता है। आज किसान खेती छोड़ रहे हैं, मजदूर मेहनत करना बंद कर रहे हैं। विद्यार्थी भी आलस्य की शिकार हो गए हैं।
अत: हम लोगों को भाग्य के सहारे न बैठ कर के पुरुषार्थ करना चाहिए। क्योंकि बिना पुरुषार्थ के कुछ भी संभव नहीं है। आज जितना भी विकास हुआ है भाग्य के सारे नहीं हुआ है, बल्कि परिश्रम के बल पर हुआ है। जो व्यक्ति निरंतर परिश्रम करता है, वह अपने जीवन में कभी दुखी नहीं होता और अपनी इच्छित वस्तुओं को प्राप्त कर लेता है। लेकिन आज का युवा वर्ग आलस्य का शिकार हो रहा है जोकि राष्ट्र विकास के लिए बाधक हो सकता है।