२) भाग्य पर विश्वास रखना चाहिए की नहीं इस बारे मेंअपने विचार लिखिए.
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किसी ने भाग्य को ईश्वर की इच्छा समझा है, तो किसी ने भाग्य को समय का चक्र जिसे जीतना असंभव है। कोई मानता है कि जो आज का पुरुषार्थ है, वही कल का भाग्य है। असल में भाग्य को ईश्वरप्रदत्त इसलिए मान लिया जाता है कि वह हमारे वर्तमान के कर्म पर आधारित नहीं होता। जब भी हमारी इच्छा के खिलाफ या इच्छा से कम या अधिक प्राप्ति होती है तो हम भाग्य को ही उसका आधार मान लेते हैं, लेकिन है वह भी कर्म का ही फल। जो दृश्य है वह कर्म और जो अदृश्य है वह भाग्य। जो दिखाई दे रहा है वह कर्म और जो नहीं दिखाई दे रहा है वह भाग्य। भारतीय चिन्तन पुनर्जन्म पर विश्वास करता है। हमने जो जन्म लिया है उसका पिछले जन्म से भी और अगले जन्म से भी सम्बन्ध होता है। अर्थात् हमारे कर्म का खाता आज भी हमारे साथ चल रहा है और जब पुनर्जन्म लेंगे तब भी वह कर्म खाता साथ चलेगा। इस आधार पर भाग्य की बात कुछ समझ आती है कि जिस तरह हमारा स्थूल धन अर्थात पूंजी चाहे वह धन के रूप में हो या वस्तु के रूप में, वह हमारे मरने से समाप्त नहीं हो जाती, इसी प्रकार हमारे कर्म का खाता भी जरूरी नहीं कि हमारे एक जन्म के साथ समाप्त हो जाए। वह भी शेष रहता है। यही कारण है कि हम कर्म को भी प्रधान मानते हैं और भाग्य की बात भी कहते हैं। हम जैसे कर्म करेंगे वैसा ही हमारा बहीखाता होगा और उसी के आधार पर हमें इस जन्म में संचित कर्म का फल प्राप्त होगा।
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