भाग्यवाद का छल क्या है
है?
नर समाज का भाग्य क्या है?
श्रमिक के सम्मुख क्या-क्या झुके हैं
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प्रस्तुत प्रश्न कण कण का अधिकारी नामक कविता से लिया गया हैं|इस पाठ की विधा कविता हैं|कविता रसात्मक होती है|.डॉ रामधारी सिंह दिनकर हिंदी के प्रमुख कवी माने जाते है|इनका जन्म सन १९०८ में मुगेर में हुआ और मृत्यु सन १९७४ में हुआ|”उर्वशी” काव्य पर इनको ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला|रेणुका,कुरुक्षेत्र परसुराम की प्रतीक्षा आदि आदि इनकी प्रमुख रचनाए है|
कविता के अनुसार गाँधी जी अपना काम खुद करते थेये रोज सूत कातते,कपडा बुनते,और अनाज से कंकर चुनते थे|ये रोज चक्की भी चलाते थे|गाँधी जी के अनुसार श्रम पूजनीय हैं|हमारे जीवन में श्रम का बहोत महत्वपूर्ण स्तन है|सभी लोग दिन-रात काम करते हैं|श्रम से ही हमारी रोजी रोटी चलती हैं|श्रम एक अमूल्य धन हैं|श्रम करने से ही हमें समाज में सम्मान भावना से देखा जाता हैं|श्रम से ही जीवन में हम सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं|
एक आदमी पाप करके धन संचित करता हैं तो दूसरा आदमी धोके से छीन लेता हैं|इसे ही भाग्य वाद का चल कहते हैं|
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