भूगर्भ में पेट्रोलियम की उत्पत्ति कैसे हुई ?
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Explanation:
पेट्रोलियम निक्षेपों के लिए कुछ सामान्य भूवैज्ञानिक स्थितियाँ:
वलन (फोल्डिंग) - चट्टानों की विविध पारगम्य या अपारगम्य परतों में फोल्डिंग की वजह से अनेक बार तेल के संचय के लिए उपयुक्त स्थान मिल जाता है। अपारगम्य परत तेल को नीचे जाने से रोक रही है। और परतों की फोल्डिंग तेल के इकट्ठा होने के लिए जगह उपलब्ध करवा रही है।
भ्रंश (फॉल्ट) - कई दफा परतदार चट्टानों में विविध बलों की वजह से टूट-फूट होकर परतें आड़ी-तिरछी या ऊपर-नीचे की ओर खिसक जाती हैं। इस खिसकाव की वजह से तेल के संचय के लिए कुछ स्थान बन जाता है। यहाँ ऐसी ही एक स्थिति को दिखाया गया है।
इनके अलावा भी धरती के भीतर अनेक संरचनाएँ पेट्रोलियम को संचित होने के लिए उपयुक्त मौके उपलब्ध कराती हैं।
फिर पेट्रोलियम कैसे बना होगा? इसमें तो कोई जीवाश्म नहीं मिले हैं। पेट्रोलियम की उत्पत्ति का पहला सिद्धान्त मेंडेलीव ने दिया था। जी हाँ, वही मेंडेलीव जिन्होंने हमें आवर्त तालिका दी है। मेंडेलीव ने रसायन शास्त्र के कई क्षेत्रों में काम किया था और उनका एक योगदान पेट्रोलियम की अजैविक उत्पत्ति का सिद्धान्त है। मेंडेलीव और उनके कुछ अनुयायियों के मुताबिक, धरती पर पेट्रोलियम का निर्माण पृथ्वी की गहराई में सरल हाइड्रोकार्बन्स (कार्बन व हाइड्रोजन से बने यौगिक) के आपस में जुड़कर लम्बी-लम्बी शृंखला वाले जटिल हाइड्रोकार्बन अणुओं के निर्माण के द्वारा हुआ है। इन्हीं अपेक्षाकृत लम्बी शृंखला वाले जटिल हाइड्रोकार्बन्स का मिश्रण पेट्रोलियम है।
सरल हाइड्रोकार्बन किस तरह बने होंगे? इनके निर्माण के बारे में यह विचार प्रस्तुत किया गया कि जब पानी धरती की निचली परतों में रिसा तो वहाँ उसकी क्रिया लौह कार्बाइड या अन्य धात्विक कार्बाइड्स के साथ हुई जिसके फलस्वरूप एसिटिलीन या मीथेन (दोनों हाइड्रोकार्बन हैं) का निर्माण हुआ। यह क्रिया प्रयोगशाला में आसानी से होती है। लिहाज़ा यह मान लिया गया कि पेट्रोलियम की उत्पत्ति का मामला सुलट गया है। अलबत्ता, यह कोई नहीं दर्शा सका कि उन गहराइयों में लौह कार्बाइड मौजूद है।
जब कुछ नए तथ्य सामने आए, तो पेट्रोलियम की उत्पत्ति का अजैविक सिद्धान्त कमज़ोर पड़ने लगा। एक तो, यह पता चला कि प्लवकों (planktons) की एक-कोशिकीय काया में तेल की बारीक-बारीक बूँदें पाई जाती हैं। प्लवक एक-कोशिकीय जीव होते हैं जो समुद्र में कुल जीवों में से लगभग 95 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं। तेल की उपस्थिति की व्याख्या दो दृष्टि से की गई - एक तो इसके निर्माण के बारे में बताया गया कि वसीय अम्लों में पाई जाने वाली कार्बन शृंखला और इन तेलों में पाई जाने वाली शृंखला के बीच कुछ समरूपता है। दूसरा, यह कहा गया कि तेल की इन नन्हीं-नन्हीं बूँदों की बदौलत प्लवक हल्के होकर समुद्र सतह पर तैर सकते हैं। इनका सतह के नज़दीक तैरना आवश्यक है क्योंकि यदि ये गहराई में रहेंगे तो सूरज की रोशनी न मिलने के कारण इनमें प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नहीं हो पाएगी।