Hindi, asked by superstars5405, 1 year ago

भागवत गीता के कुछ श्लोकों का तात्पर्य हिंदी में लिखिए|

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Answered by Sauron
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(1) नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)


इस श्लोक का अर्थ है: आत्मा को न शस्त्र  काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा के अजर-अमर और शाश्वत होने की बात की है।)

(2)

हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।

तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 37)


इस श्लोक का अर्थ है: यदि तुम (अर्जुन) युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख को भोगोगे... इसलिए उठो, हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो। (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने वर्तमान कर्म के परिणाम की चर्चा की है, तात्पयज़् यह कि वर्तमान कर्म से श्रेयस्कर और कुछ नहीं है।)

(3)

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिभज़्वति भारत:।

अभ्युत्थानमधमज़्स्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

(चतुथज़् अध्याय, श्लोक 7)


इस श्लोक का अथज़् है: हे भारत (अर्जुन), जब-जब धर्म ग्लानि यानी उसका लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयम

श्रीमद्भगवद्गीता दुनिया के वैसे श्रेष्ठ ग्रंथों में है, जो न केवल सबसे ज्यादा पढ़ी जाती है, बल्कि कही और सुनी भी जाती है।



(चतुथज़् अध्याय, श्लोक 7)


इस श्लोक का अथज़् है: हे भारत (अर्जुन), जब-जब धर्म ग्लानि यानी उसका लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयम् की रचना करता हूं अर्थात अवतार लेता हूं।


(4)

परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।

धमज़्संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥

(चतुथज़् अध्याय, श्लोक 8)


इस श्लोक का अर्थ है: सज्जन पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कमिज़्यों के विनाश के लिए... और धर्म की स्थापना के लिए मैं (श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।


इस प्रसिद्ध शक्तिपीठ में नहीं है देवी की कोई मूर्ति होती है श्रीयंत्र की पूजा






Answered by KomalaLakshmi
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भागवत गीता महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है।कुरु क्षेत्र की युद्धभूमि में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया था वह श्रीमद्भगवदगीता के नाम से प्रसिद्ध है। गीता में १८ अध्याय और 720 श्लोक हैं।भारतीय परंपरा के अनुसार गीता का स्थान वही है जो उपनिषद् और ब्रह्मसूत्रों का है।

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)

इस श्लोक का अर्थ है:  आत्मा को न शस्त्र  काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 7)

इस श्लोक का अर्थ है:  जब-जब धर्म को हानि पहुँचती है यानी उसका लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं यानी की (कृष्ण परमात्मा ) धर्म स्थापना  के लिए स्वयम् की रचना करता हूं अर्थात अवतार लेता हूं।

परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥

(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 8)

इस श्लोक का अर्थ है:  सज्जनों के रक्षा  के लिए और दुरजनो के विनाश के लिए... और धर्म की स्थापना के लिए मैं याने की (श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 47)

इस श्लोक का अर्थ है: मानव कर्म करने केलिए ही स्रुजाया गया है|कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों में नहीं... इसलिए कर्म को प्रतिफल  के लिए मत करो और न ही काम करने में तुम्हारी रूचि  हो।


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