Hindi, asked by twisharitripura, 4 months ago

भूहानेश्वरी टेंपल के बारे में लिखिए ​

Answers

Answered by nyatibhavya0905
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Answer:

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Explanation:

भुवनेश्वरी अर्थात संसार भर के ऐश्वयर् की स्वामिनी। भुवनेश्वरी आदि शक्ति का पंचम स्वरूप है जिस रूप में इनहोने त्रिदेवो को दर्शन दिये दिये थे। देवी भागवत में इस बात का स्पष्टीकरण मिलता है। वैभव-पदार्थों के माध्यम से मिलने वाले सुख-साधनों को कहते हैं। ऐश्वर्य-ईश्वरीय गुण है- वह आंतरिक आनंद के रूप में उपलब्ध होता है। ऐश्वर्य की परिधि छोटी भी है और बड़ी भी। छोटा ऐश्वर्य छोटी-छोटी सत्प्रवृत्तियाँ अपनाने पर उनके चरितार्थ होते समय सामयिक रूप से मिलता रहता है। यह स्वउपार्जित, सीमित आनंद देने वाला और सीमित समय तक रहने वाला ऐश्वर्य है। इसमें भी स्वल्प कालीन अनुभूति होती है और उसका रस कितना मधुर है यह अनुभव करने पर अधिक उपार्जन का उत्साह बढ़ता है।

वैभव-पदार्थों के माध्यम से मिलने वाले सुख-साधनों को कहते हैं। ऐश्वर्य-ईश्वरीय गुण है- वह आंतरिक आनंद के रूप में उपलब्ध होता है। ऐश्वर्य की परिधि छोटी भी है और बड़ी भी। छोटा ऐश्वर्य छोटी-छोटी सत्प्रवृत्तियाँ अपनाने पर उनके चरितार्थ होते समय सामयिक रूप से मिलता रहता है। यह स्वउपार्जित, सीमित आनंद देने वाला और सीमित समय तक रहने वाला ऐश्वर्य है। इसमें भी स्वल्प कालीन अनुभूति होती है और उसका रस कितना मधुर है यह अनुभव करने पर अधिक उपार्जन का उत्साह बढ़ता है।भुवनेश्वरी इससे ऊँची स्थिति है। उसमें सृष्टि भर का ऐश्वर्य अपने अधिकार में आया प्रतीत होता है। स्वामी रामतीर्थ अपने को 'राम बादशाह' कहते थे। उनको विश्व का अधिपति होने की अनुभूति होती थी, फलतः उस स्तर का आनंद लेते थे, जो समस्त विश्व के अधिपति होने वाले को मिल सकता है। छोटे-छोटे पद पाने वाले-सीमित पदार्थों के स्वामी बनने वाले, जब अहंता को तृप्त करते और गौरवान्वित होते हैं तो समस्त विश्व का अधिपति होने की अनुभूति कितनी उत्साहवर्धक होती होगी, इसकी कल्पना भर से मन आनंद विभोर हो जाता है। राजा छोटे से राज्य के मालिक होते हैं, वे अपने को कितना श्रेयाधिकारी, सम्मानास्पद एवं सौभाग्यवान् अनुभव करते हैं, इसे सभी जानते हैं। छोटे-बडे़ राजपद पाने की प्रतिस्पर्धा इसीलिए रहती है कि अधिपत्य का अपना गौरव और आनन्द हैं। मां भुवनेश्वरी ही शताक्षी और शाकंभरी देवी के नाम से विख्यात हुई माता ने ही हिमालय की शिवालिक पर्वत श्रृंखला पर खड़े होकर 9 दिन और रात तक अश्रु वृष्टि की अत: माँ शाकंभरी देवी के नाम से सहारनपुर मे पुजित है।

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