Hindi, asked by cy8370173, 3 days ago

भाई-बहन कहानी के श्रीराम जी का चरित्र चित्रण कीजिए।​

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राम भगवान विष्णु के अवतार हैं, और इन्हें श्रीराम और श्रीरामचन्द्र के नामों से भी जाना जाता है। रामायण में वर्णन के अनुसार अयोध्या के सूर्यवंशी राजा, चक्रवर्ती सम्राट दशरथ ने पुत्रेश्टी यज्ञ (पुत्र प्राप्ती यज्ञ ) कराया जिसके फलस्वरूप उनके पुत्रों का जन्म हुआ। श्रीराम का जन्म देवी कौशल्या के गर्भ से अयोध्या में हुआ था। श्रीराम जी चारों भाइयों में सबसे बड़े थे। हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को श्रीराम जयंती या राम नवमी का पर्व मनाया संस्कृत महाकाव्य रामायण के रूप में वर्णित हुआ है। रामायण में सीता के खोज में श्रीलंका जाने के लिए 48 किलोमीटर लम्बे 3 किलोमीटर चोड़े पत्थर के सेतु का निर्माण करने का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसको रामसेतु कहते हैं ।

राम ( रामचन्द्र )

Lord Rama

अन्य नाम - रामचंद्र , दशरथसुत , कौशल्यानंदन , सीतावल्लभ , रघुनन्दन , रघुवर आदि।

निवासस्थान - अयोध्या, वैकुण्ठलोक (परमधाम)

अस्त्र - धनुष (कोदंब/कोदण्ड)

जीवनसाथी - सीता

पिता- महाराज दशरथ (father)

माता - देवीकौशल्या(mother)

भाई-बहन - भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न और शांता

संतान - कुश, लव

त्यौहार - राम नवमी

गोस्वामी तुलसीदास ने भी उनके जीवन पर केन्द्रित भक्तिभावपूर्ण सुप्रसिद्ध महाकाव्य रामचरितमानस की रचना की है। इन दोनों के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं में भी रामायण की रचनाएँ हुई हैं, जो काफी प्रसिद्ध भी हैं। भारत में श्री राम अत्यन्त पूजनीय हैं और आदर्श पुरुष हैं तथा विश्व के कई देशों में भी श्रीराम आदर्श के रूप में पूजे जाते हैं जैसे थाईलैण्ड, इण्डोनेशिया आदि । इन्हें पुरुषोत्तम शब्द से भी अलंकृत किया जाता है।[1][मृत कड़ियाँ] मर्यादा-पुरुषोत्तम राम, अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे। राम की पत्नी का नाम सीता था इनके तीन भाई थे- लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। हनुमान राम के सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं। राम ने लंका के राजा रावण (जिसने अधर्म का पथ अपना लिया था) का वध किया। श्री राम की प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में है। श्री राम ने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता-पिता, यहाँ तक कि पत्नी का भी साथ छोड़ा। इनका परिवार, आदर्श भारतीय परिवार का प्रतिनिधित्व करता है। राम रघुकुल में जन्मे थे, जिसकी परम्परा रघुकुल रीति सदा चलि आई प्राण जाई पर बचन न जाई[1] की थी। राम के पिता दशरथ ने उनकी सौतेली माता कैकेयी को उनकी किन्हीं दो इच्छाओं को पूरा करने का वचन (वर) दिया था। कैकेयी ने दासी मन्थरा के बहकावे में आकर इन वरों के रूप में राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राजसिंहासन और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास मांगा। पिता के वचन की रक्षा के लिए राम ने खुशी से चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया। पत्नी सीता ने आदर्श पत्नी का उदाहरण देते हुए पति के साथ वन (वनवास) जाना उचित समझा। भाई लक्ष्मण ने भी राम के साथ चौदह वर्ष वन में बिताए। भरत ने न्याय के लिए माता का आदेश ठुकराया और बड़े भाई राम के पास वन जाकर उनकी चरणपादुका (खड़ाऊँ) ले आए। फिर इसे ही राज गद्दी पर रख कर राजकाज किया। जब राम वनवासी थे तभी उनकी पत्नी सीता को रावण हरण (चुरा) कर ले गया। जंगल में राम को हनुमान जैसा मित्र और भक्त मिला जिसने राम के सारे कार्य पूरे कराये। राम ने हनुमान, सुग्रीव आदि वानर जाति के महापुरुषों की सहायता से सीता को ढूंंढा। समुद्र में पुल बना कर लंका पहुँचे तथा रावण के साथ युद्ध किया। उसे मार कर सीता जी को वापस ले कर आये। राम के अयोध्या लौटने पर भरत ने राज्य उनको ही सौंप दिया। राम न्यायप्रिय थे। उन्होंने बहुत अच्छा शासन किया, इसलिए लोग आज भी अच्छे शासन को रामराज्य की उपमा देते हैं। इनके दो पुत्रों कुश व लव ने इनके राज्यों को संभाला। वैदिक धर्म के कई त्योहार, जैसे दशहरा, राम नवमी और दीपावली, राम की वन-कथा से जुड़े हुए हैं।

रामायण :

जय श्री राम... प्रभू जय श्री राम... जगत में तेरा ही एक नाम... चैत्र शुद्ध नवमी को... अयोध्या नगरी में जन्मा... अवतार पुरुष युग का प्रभू श्री राम... युगपुरूष फिर भी कष्ट से भरा जीवन... संसार में सुख-दुख, छल कपट... किसी को भी नही छुटता... राजपुत्र होने के बावजूद भी... वनवास में जीवन बिताया... और कुटीर को ही महल बनाया... सितामाई ने पत्नी का धर्म निभाया... लखन ने तो भाईचारा भी जगाया... भरत शत्रुघ्न ने तो... आपके खडाऊ को ही सिंहासन दिलवाया... राजा दशरथ के आदेश का वचन निभाया... माँ बाप भाई और महल का सूख त्यागा... और वनवास को गले लगाया... उस पे कहर हो गया तो... रावण ने भी माताराणी को भगाया... हनुमानजी ने आपको गुरु बनाया... खुब लढी वानरसेना... घनघोर युद्ध चलाया... और रावण के अधर्म का अंत करवाया... सत्यवचन के लिए धोबी के आरोप से ... माताराणी से भी अग्नी परीक्षा करवाया... पत्नी को त्याग कर धर्म पालन जताया... बेटों का भी सुख नही पाया.... पिता को अंत में पाणी भी नही पिलाया... ऐसा खडतर जीवन बिताया... और सबकुछ अपना गवाया... पर सत्यवचन निभाया... सारे जगत में एक... आदर्श प्रभू श्री राम नाम कमाया... ©श्री. गजानन रा. परब.(बाबूजी), सिन्धुदुर्ग।

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