भाई और बहन के बीच अभ्यास के महत्व को बताते हुए संवाद लेखन
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शैलेश – नीतू, तुमने न अपना बिस्तर ठीक किया है और ना ही कपड़े अलमारी में रखे हैं।
नीतू – भैया, अभी कर दूँगी सब। मैं माँ के लिए दलिया बना रही थी। जब तक माँ ठीक नहीं हो जाती हम दोनों को मिलकर सारे काम करने होगे।
शैलेश – वाह मेरी बहना! तू इतनी समझदार कैसे हो गई ? अब से घर की सफ़ाई, कपड़े धोने, बाजार से फल सब्जी लाने और ठीक समय पर माँ को दवा देने की ज़िम्मेदारी मेरी।
नीतू – ठीक है। चाय-नाश्ता, खाना बनाने की जिम्मेदारी मेरी। ये तो अच्छा है स्कूल की छुट्टियाँ चल रही हैं। हम दोनों माँ की अच्छी तरह देखभाल कर सकेंगे।
शैलेश – पिताजी भी अगले हफ्ते तक लौट आएँगे। डॉक्टर चाचा की बात से भी तसल्ली हुई। माँ का बुखार तीन दिनों में उतर जाएगा और फिर दो-तीन दिनों में माँ पहले जैसी भली चंगी हो जाएँगी।
नीतू – घर के सारे काम हमें सलीके से करने होंगे। माँ खुश हो जाएँगी।
शैलेश- चल तू खाने की तैयारी कर, मैं थोड़ी देर माँ के पास बैठकर उन्हें अखबार की खबरें पढ़कर सुनाता हूँ।