भाई रे समझ जग ब्योहार।
जब ताईं तेरे धन पराक्रम करैं सबहीं प्यार।
अपने सुख । सबहिं चाहैं मित्र सुत अरू नार।
इन्हीं तौ अपनै बस कियो है मोह बेड़ी डारि।
सबन तो कूँ भय दिखाओ लाज लकुटी मार।
बाजीगर के बाँदरा ज्यों फिरत घर-घर द्वार।
जबै तो कूँ बिपति आवै जरा, कोर, विकार।
तबै तो लाज मानैं करै ना तेरी सार।
इनकी संगति सदा दुःख है समझ मूढ़ गँवार।
हरि प्रीतम कूँ सुमिरि ले कहै चरनदास पुकार।।
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