भाई साहब ने लेखक ko
पतंग उड़ाने के लिए क्यों
मिना किया?
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भाई साहब की इज्जत करता था और उनकी नजरों से छिप कर ही पतंग उडाता था। एक दिन शाम के समय ,हॉस्टल से दूर लेखक एक पतंग को पकड़ने के लिए बिना किसी की परवाह किए दौड़ा जा रहा था। अचानक भाई साहब से उसका आमना -सामना हुआ, वे शायद बाजार से घर लौट रहे थे। उन्होंने बाजार में ही उसका हाथ पकड़ लिया और बड़े क्रोधित भाव से बोले – ‘इन बेकार के लड़कों के साथ तुम्हें बेकार के पतंग को पकड़ने के लिए दौड़ते हुए शर्म नहीं आती ? तुम्हे इसका भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि अब तुम छोटी कक्षा में नहीं हो ,बल्कि अब तुम आठवीं कक्षा में हो गए हो और मुझसे सिर्फ एक कक्षा पीछे पढ़ते हो। आखिर आदमी को थोड़ा तो अपनी पदवी के बारे में सोचना चाहिए। समझ किताबें पढ़ लेने से नहीं आती, बल्कि दुनिया देखने से आती है। बड़े भाई साहब लेखक को कहते हैं कि यह घमंड जो अपने दिल में पाल रखा है कि बिना पढ़े भी पास हो सकते हो और उन्हें लेखक को डाँटने और समझने का कोई अधिकार नहीं रहा, इसे निकाल डालो।
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