भिजय केिल लोहे की नहीं, धम की रही धरा पर धम भभु होकर रहते साट, दया भदलाते र-र म ।
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सामाजिक व धार्मिक व्यवस्था में कठोरता, भेदभाव तथा यज्ञ व कर्मकांड स्थापित हो चुका था। इसी दौरान (6 शता.ई.पू.) लोहे का कृषि में व्यापक उपयोग होने के कारण कृषि उत्पादन में विस्तार हुआ। कृषि अधिशेष बढा, कृषि के विस्तार ने पशुओं के महत्व को भी बढा दिया, जबकि वैदिक व्यवस्था में यज्ञ के नाम पर बङी मात्रा में पशु हत्या हो रही थी।
इसी समय द्वितीय नगरीकरण की शुरुआत के साथ वाणिज्य – व्यापार की शुरुआत हुयी । वैश्यों की आर्थिक स्मृद्धि बढी। महाजनपदों के विकास के साथ स्थाई सेना व पेशेवर नौकरशाही का विकास हुआ। इससे राजा की शक्ति में वृद्धि हुई।
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सामाजिक व धार्मिक व्यवस्था में कठोरता, भेदभाव तथा यज्ञ व कर्मकांड स्थापित हो चुका था। इसी दौरान (6 शता.ई.पू.) लोहे का कृषि में व्यापक उपयोग होने के कारण कृषि उत्पादन में विस्तार हुआ। कृषि अधिशेष बढा, कृषि के विस्तार ने पशुओं के महत्व को भी बढा दिया, जबकि वैदिक व्यवस्था में यज्ञ के नाम पर बङी मात्रा में पशु हत्या हो रही थी।
इसी समय द्वितीय नगरीकरण की शुरुआत के साथ वाणिज्य – व्यापार की शुरुआत हुयी । वैश्यों की आर्थिक स्मृद्धि बढी। महाजनपदों के विकास के साथ स्थाई सेना व पेशेवर नौकरशाही का विकास हुआ। इससे राजा की शक्ति में वृद्धि हुई।