भूकंप से होने वाली आपदा को कैसे कम किया जा सकता है
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दुनिया में हर साल लगभग पाँच लाख भूकम्प आते हैं। इनमें से कोई एक हजार के बारे में ही जानकारी हम तक पहुँचती है। असल में ज़मीन के अन्दर लगातार टूट-फूट होती रहती है। बाहर से वह दिखाई नहीं देती। धरती पर बाहरी परतों का दबाव पड़ता रहता है। भीतरी ताकतें भी अपना ज़ोर लगाती हैं। दबाव अधिक होने पर चट्टानें अचानक टूट जाती हैं। वे टूट कर या तो अन्दर धँस जाती हैं अथवा ऊपर की ओर उभरने लगती हैं। उनके इसी ज़ोरदार धक्के से पृथ्वी काँपने लगती है। तकनीकी शब्दों में पृथ्वी की इन विभिन्न प्रकार की सतहों का परस्पर टकराव ही भूकम्प का कारण होता है।
भूकम्प आपदा प्रबंधन
इसमें कोई सन्देह नहीं कि भूकम्प एक प्राकृतिक विपदा है। ज़मीन की ऊपरी परत आमतौर पर सख़्त और स्थिर होती है। अन्दर से पृथ्वी प्रायः काँपती रहती है। यह कम्पन इतना मामूली होता है कि हमें पता ही नहीं लगता। कभी-कभी यह कम्पन इतना विकराल रूप धारण कर लेता है कि पहाड़ों की चट्टानें टूट कर गिरने लगती हैं। जमीन में दरारें पड़ जाती हैं। नगर के नगर ध्वंस हो जाते हैं। पानी के स्रोत अपना स्थान बदल लेते हैं। कहीं पर नए चश्मे फूट पड़ते हैं और कहीं पर पानी से भरे चश्मे सूख जाते हैं। गहरी खाईयाँ गुम हो जाती हैं और नई घाटियाँ बन जाती हैं। इन सब कारणों से जान-माल का बहुत अधिक नुक़सान होता है। यह नुक़सान कम से कम हो उसके लिये अब तकनीक और समझदारी ही एक सहारा है।
भूकम्प आपदा प्रबंधन
भारत में 30 सितम्बर, 1993 को महाराष्ट्र के लातूर नामक स्थान पर आए भूकम्प में 28,000 लोगों के मरने का अनुमान लगाया गया था। इसके प्रभाव को 12 किलोमीटर तक महसूस किया गया था। 26 जनवरी 2001 को गुजरात के भुज इलाके में एक भयंकर भूकम्प आया, जिसमें लगभग 20,000 लोग मारे गए और दो लाख से अधिक लोग घायल हुए। चार लाख घर तबाह हो गए। कई ऐतिहासिक महत्व की इमारतों का अस्तित्व ही मिट गया।
भूकम्प आपदा प्रबंधन
गत दिनों ऐसे ही भूकम्प जम्मू-कश्मीर के उरी क्षेत्र में और उत्तराखंड के चमोली क्षेत्र में आए थे। वहाँ पर बहुत अधिक जान-माल की हानि हुई। वहाँ के लोगों के काम-काज ठप्प हो गए। अधिकतर आदमियों और जानवरों की मौतें मकानों के ढह जाने और बड़े-बड़े पत्थरों के नीचे दब जाने के कारण हुई। लोग अपने घरों की खिड़कियों से कूदे जिसके कारण बुरी तरह घायल हो गए। घरों में फँसे हुए बच्चे को सुरक्षित बाहर निकालने के प्रयास में भी बहुत लोग ज़ख़्मी हुए। खेतों में काम कर रहे लोगों पर भी बड़े-बड़े पत्थर आकर गिरे जिसके कारण काफी लोग मर गए। सड़कों पर चल रहे वाहन मलबे में दब गए, उनके भीतर बैठे लोग अपनी जान नहीं बचा पाए। चरने के लिये गए पशु अपने घर लौट कर नहीं आ सके। कई रास्ते बंद हो गए।
लोगों ने घरों से बाहर निकल कर अपने परिवार सहित खुले आसमान के नीचे रातें बिताई। राहत कार्य दो-तीन दिन बाद ही शुरू हो सके। बाद में लोगों को आवश्यक राहत सामग्री वितरित की गई। राहत शिविरों का प्रबंध किया गया। ग़ैरसरकारी संस्थाओं ने भी सहायता की परन्तु उनमें आपसी तालमेल नहीं था। आमतौर पर सड़कों के किनारे-किनारे अधिक राहत पहुँच गई और भीतरी इलाके इससे वंचित रह गए। इस अवसर पर इन क्षेत्रों में तैनात सेना ने उल्लेखनीय कार्य किए और अनेक लोगों की जान माल की रक्षा की। सेना के जवानों ने गाँव-गाँव तक राहत सामग्री पहुँचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भूकम्प आपदा प्रबंधन
भूकम्प के बाद कई जगहों पर धरती का पानी सूख गया। खेती तबाह हो गई थी। आज भी घरों के नाम पर केवल खंडहर बचे हैं। कितने ही बच्चे यतीम हो गए हैं। अभी तक लोग रात में चैन से सो नहीं पाते हैं। वहाँ के निवासियों का पारिवारिक, सामाजिक और सामुदायिक जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। आज भी वहाँ के लोगों का जीवन सामान्य नहीं हो पाया है। इस विपदा का गहरा प्रभाव महिलाओं और बच्चों पर विशेष रूप से हुआ।
Answer:
भूकम्प या भूचाल पृथ्वी की सतह के हिलने को कहते हैं। यह पृथ्वी के स्थलमण्डल (लिथोस्फ़ीयर) में ऊर्जा के अचानक मुक्त हो जाने के कारण उत्पन्न होने वाली भूकम्पीय तरंगों की वजह से होता है। भूकम्प बहुत हिंसात्मक हो सकते हैं और कुछ ही क्षणों में लोगों को गिराकर चोट पहुँचाने से लेकर पूरे नगर को ध्वस्त कर सकने की इसमें क्षमता होती है।
भूकंप का मापन भूकम्पमापी यंत्र से किया जाता है, जिसे सीस्मोग्राफ कहा जाता है। एक भूकंप का आघूर्ण परिमाण मापक्रम पारंपरिक रूप से नापा जाता है, या सम्बंधित और अप्रचलित रिक्टर परिमाण लिया जाता है। ३ या उस से कम रिक्टर परिमाण की तीव्रता का भूकंप अक्सर अगोचर होता है, जबकि ७ रिक्टर की तीव्रता का भूकंप बड़े क्षेत्रों में गंभीर क्षति का कारण होता है। झटकों की तीव्रता का मापन विकसित मरकैली पैमाने पर किया जाता है।
पृथ्वी की सतह पर, भूकंप अपने आप को, भूमि को हिलाकर या विस्थापित कर के प्रकट करता है। जब एक बड़ा भूकंप उपरिकेंद्र अपतटीय स्थति में होता है, यह समुद्र के किनारे पर पर्याप्त मात्रा में विस्थापन का कारण बनता है, जो सूनामी का कारण है। भूकंप के झटके कभी-कभी भूस्खलन और ज्वालामुखी गतिविधियों को भी पैदा कर सकते हैं।
सर्वाधिक सामान्य अर्थ में, किसी भी सीस्मिक घटना का वर्णन करने के लिए भूकंप शब्द का प्रयोग किया जाता है, एक प्राकृतिक घटना]) या मनुष्यों के कारण हुई कोई घटना -जो सीस्मिक तरंगों ) को उत्पन्न करती है। अक्सर भूकंप भूगर्भीय दोषों के कारण आते हैं, भारी मात्रा में गैस प्रवास, पृथ्वी के भीतर मुख्यतः गहरी मीथेन, ज्वालामुखी, भूस्खलन और नाभिकीय परिक्षण ऐसे मुख्य दोष हैं।
भूकंप के उत्पन्न होने का प्रारंभिक बिन्दु केन्द्र या हाईपो सेंटर कहलाता है। शब्द उपरिकेंद्र का अर्थ है, भूमि के स्तर पर ठीक इसके ऊपर का बिन्दु।
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