भिक्षा पत्र के लिए दो पेज का सारांश
Answers
Answer:
दो-तीन वर्ष ठीक तरह से वर्षा न हुई थी। और इस बार तो एक बूंद भी ना बरसी थी। भयंकर सूखा पड़ा था। धरती का कलेजा फट गया था। उसमें जगह-जगह दरारें पड़ गई थी। पेड़ पौधे सूख गए थे। पशु-पक्षी प्यास से व्याकुल थे। पक्षियों का कलरव भी कम सुनाई पड़ता था। न जाने भूखे-प्यासे कहां दुबके बैठे थे।
नगर में अंकल पड़ा था। जिसके पास थोड़े बहुत अन्न था। उसने छुपाकर दुर्दिन के लिए रख लिया था। प्रजा हा हाकार कर उठी बात महात्मा बुद्ध की कानों में भी परी जन जन की परेशानी उन्हें देखी ना गई उन्होंने अपने शिष्य को इकट्ठा किया नगर के धनी भक्तजनों को बुला भेजा
विनम्र स्वर में बुद्ध ने प्रश्न किया प्रियजनों बोलो भूखी प्रजा को अन देने के लिए तुम मुझसे कौन-कौन तैयार है
महात्मा बुद्ध के वचन सुन रत्नाकर सेठ का माथा लज्जा से झुक गया वह हाथ जोड़कर बोला भगवान इतने बड़े नगर के हर प्राणी को अनाज पहुंचाना मेरे बस की बात नहीं है
तथागत ने अपनी दृष्टि घुमाई बुद्ध की नजर सेनापति जयसेन पर परी जयसेन तथागत प्राण देने से यदि जनता को अन प्राप्त हो जाए तो मैं पल भर में तैयार हूं लेकिन मेरे घर में इतना अनाज कहां की पूरे नगर का पेट भर सकू
तभी धनी धर्मपाल भी बोल उठा भगवान मैं तो पहले ही भाग्य का मारा हूं वर्षा ना होने से मेरा सब खेत सूख गया है बीज के लिए रखे अनाज से किसी तरह परिवार को आधा पेट खिला पा रहा हूं मुझे तो एक चिंता और है इस वर्ष राज्य का कर कैसे चुका पाऊंगा सभी एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे कभी भीड़ में से अचानक एक युवती सामने आई वह भी भगवान तथागत के प्रिय शिष्य थी और उसने बोला यह सेविका आपकी आज्ञा का पालन करेगी
Answer:
दो-तीन वर्ष ठीक तरह से वर्षा न हुई थी। और इस बार तो एक बूंद भी ना बरसी थी। भयंकर सूखा पड़ा था। धरती का कलेजा फट गया था। उसमें जगह-जगह दरारें पड़ गई थी। पेड़ पौधे सूख गए थे। पशु-पक्षी प्यास से व्याकुल थे। पक्षियों का कलरव भी कम सुनाई पड़ता था। न जाने भूखे-प्यासे कहां दुबके बैठे थे।
नगर में अंकल पड़ा था। जिसके पास थोड़े बहुत अन्न था। उसने छुपाकर दुर्दिन के लिए रख लिया था। प्रजा हा हाकार कर उठी बात महात्मा बुद्ध की कानों में भी परी जन जन की परेशानी उन्हें देखी ना गई उन्होंने अपने शिष्य को इकट्ठा किया नगर के धनी भक्तजनों को बुला भेजा
विनम्र स्वर में बुद्ध ने प्रश्न किया प्रियजनों बोलो भूखी प्रजा को अन देने के लिए तुम मुझसे कौन-कौन तैयार है
महात्मा बुद्ध के वचन सुन रत्नाकर सेठ का माथा लज्जा से झुक गया वह हाथ जोड़कर बोला भगवान इतने बड़े नगर के हर प्राणी को अनाज पहुंचाना मेरे बस की बात नहीं है
तथागत ने अपनी दृष्टि घुमाई बुद्ध की नजर सेनापति जयसेन पर परी जयसेन तथागत प्राण देने से यदि जनता को अन प्राप्त हो जाए तो मैं पल भर में तैयार हूं लेकिन मेरे घर में इतना अनाज कहां की पूरे नगर का पेट भर सकू
तभी धनी धर्मपाल भी बोल उठा भगवान मैं तो पहले ही भाग्य का मारा हूं वर्षा ना होने से मेरा सब खेत सूख गया है बीज के लिए रखे अनाज से किसी तरह परिवार को आधा पेट खिला पा रहा हूं मुझे तो एक चिंता और है इस वर्ष राज्य का कर कैसे चुका पाऊंगा सभी एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे कभी भीड़ में से अचानक एक युवती सामने आई वह भी भगवान तथागत के प्रिय शिष्य थी और उसने बोला यह सेविका आपकी आज्ञा का पालन करेगी
Explanation: