भोलाराम का एक बेटा था। उसका नाम
था सुधाकर वह भी भला और पिता
का बहुत आनाकारी था
उसके पिता ने उससे ऐसी बात कही
एक दिन की.
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भोलाराम का एक बेटा था। उसका नाम था सुधाकर वह भी भला और पिता का बहुत आज्ञाकारी था।
उसके पिता ने उससे ऐसी बात कही एक दिन की.
इसके आगे कहानी निम्न प्रकार से लिखी गई है।
एक दिन भोलाराम ने सुधाकर से कहा कि बेटा अब मै बूढ़ा हो चला हूं, खेतों में काम करने ने परेशानी होती है इसलिए कल से खेतीबाड़ी का काम तुम है संभालना।
सुधाकर अपने पिता की हर बात मानता था इसलिए उसने पिता की बात मानी व दूसरे दिन से ही सवेरे उठकर खेत चला गया।
सुधाकर बहुत मेहनती भी था। वह अपना काम पूरी कहां से करने लगा । उसकी मेहनत रंग लाई व उस वर्ष फसल बहुत अच्छी हुई।
उसी दिन उसके खेत से एक गरीब आदमी गुजर रहा था उसने कहा कि वह बहुत गरीब है , उसे थोड़ा सा अनाज मिल जाता तो उसका भला हो जाएगा।
सुधाकर ने उसे दो बोरी अनाज दे दिया। वह गरीब उसे दुवाएं देकर चला गया।
कुछ दिनों बाद राजा के सिपाही आए व सुधाकर से कहा कि तुम्हे राजा ने बुलाया है। पहले तो सुधाकर चिंतित हुआ फिर उनके साथ चल दिया।
राज दरबार पहुंच कर वह हैरान रह गया , राजा वहीं गरीब आदमी निकला जो कुछ दिन पहले उससे अनाज मांग कर ले गया था।
राजा ने कहा कि मैं तुम्हे परख रहा था , तुम बहुत दयालु हो इसलिए तुम्हें इनाम में सोने की मुहरे दी जाती है।
मोहरे पाकर सुधाकर खुश हुआ उसका पिता भोलाराम भी अपने बेटे की मेहनत व व्यवहार से अति प्रसन्न हुआ।