भोलाराम का जीव का सारांश
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हरिशंकर परसाई की ‘भोला राम का जीव ‘ कहानी पर यह इकाई आधारित हैं। हरिशंकर परसाई कई दशकों तक अपनी व्यंग्यात्मक कहानियों और व्यंग्यलेखों के कारण चर्चा में रहे हैं। प्रस्तुत कहानी में सरकारी कार्यालयों में पनप रहे भ्रष्टाचार के कारण सामान्य व्यक्ति की बढ़ती हुई परेशानियों का मार्मिक चित्रण किया है।
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भोलाराम का जीव का सारांश
Given:
भोलाराम का जीव का सारांश
Explanation:
'हरिशंकर परसाई' ने अपनी रचना “भोलाराम का जीव” नामक कहानी में आज के शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा रिश्वतखोरी पर कटाक्ष और तीखा व्यंग किया है।
चूँकि ये कहानी भोलाराम नाम के व्यक्ति के बारे में है, जिसकी मौत होने के बावजूद उसे चैन नही मिलता और उसका जीव भटकता रहता है, इसलिए इस कहानी का नाम भोलाराम का जीव रखा गया है।
आजकल सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि बिना रिश्वत दिए कोई काम नहीं होता है । अपने जरूरी काम करवाने के लिए हर पल रिश्वत देनी पड़ती है, तभी अपना काम होता है। इस भ्रष्टाचार ने आम आदमी को बहुत परेशान कर रखा है। हमारी पृथ्वी पर यह भ्रष्टाचार इतना विस्तृत हो चुका है कि इसका विस्तार परलोक तक हो गया है, ऐसा लेखक ने इस कहानी के माध्यम से व्यंग किया है।