Hindi, asked by danishsahu39346, 5 hours ago

भोलाराम के जीव वयंग का सारांश लिखिए​

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Answered by jaykunwar
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'भोलाराम का जीव' कहानी में व्यंग्य का मुख्य लक्ष्य सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था है। पर लेखक का उद्देश्य केवल इतना ही नहीं है। ... इस सच्चाई को लेखक ने इस कहानी में चित्रगुप्त जो एक काल्पनिक चरित्र है, के द्वारा भ्रष्टाचार की स्थिति को बयान किया है 'महाराज, आजकल पृथ्वी पर इस प्रकार का व्यापार बहुत चला है।

Answered by phularaharish
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प्रस्तुत पाठ या व्यंग्य लेख भोलाराम का जीव , लेखक हरिशंकर परसाई जी के द्वारा लिखित है ।वास्तव में देखा जाए तो ज्यादातर सरकारी अधिकारी रिश्वत लेने की फेहरिस्त में शामिल होते हैं । कभी-कभी लोग सरकारी दफ्तर का चक्कर लगाते-लगाते मृत्यु को प्राप्त भी हो जाते हैं, मगर उनका काम नहीं बनता । इन्हीं भ्रष्टाचार पर व्यंग्यात्मक बाण चलाते हुए लेखक ने यह कहानी लिखी है । यदि इस कहानी के दूसरे पक्ष की बात करें तो इसमें भोलाराम नामक व्यक्ति के लगातार पांच वर्षों तक पेंशन हेतु संघर्ष करने का मार्मिक चित्रण है । प्रत्येक क्षेत्र में भ्रष्टाचार किस प्रकार पनप रहा है, इसका व्यंग्य शैली में वर्णन किया गया है । प्रस्तुत व्यंग्य लेख के अनुसार, धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य लोगों को कर्म और सिफारिश के आधार पर स्वर्ग या नरक भेजते आ रहे थे । पर सामने बैठे चित्रगुप्त बार-बार चश्मा पोंछ, बार-बार थूक से पन्ने पलट, रजिस्टर देख रहे थे । परन्तु, कोई गलती नजर नहीं आ रही थी । तभी वे धर्मराज को संबोधित करते हुए बोले – महाराज ! रिकॉर्ड सब ठीक है, भोलाराम के जीव ने पाँच दिन पहले देह त्यागी और यमदूत के साथ इस लोक के लिए रवाना भी हुआ, पर यहाँ अभी तक नहीं पहुँचा । इतने में धर्मराज ने कहा – और यह दूत कहाँ है ? जवाब में चित्रगुप्त बोलते हैं – महाराज, वह भी लापता है । दोनों की बातें चल ही रही थी कि यमदूत अन्दर प्रवेश करता है, जिसे देखते ही चित्रगुप्त बोल उठे – अरे, तू कहाँ रहा इतने दिन ? भोलाराम का जीव कहाँ है ? तभी जवाब में यमदूत हाथ जोड़ते हुए बोलता है – दयानिधान, आज तक मैंने धोखा नहीं खाया था, पर भोलाराम का जीव मुझे चकमा दे गया । भोलाराम की देह को त्यागते ही मैंने जीव को पकड़ा और इस लोक की यात्रा आरंभ की । किन्तु वह जीव मेरे चंगुल से छूटकर न जाने कहाँ गायब हो गया । इन पाँच दिनों में मैंने सारा ब्रह्माण्ड छान डाला, पर उस जीव का कहीं पता नहीं चला । यमदूत की बात सुनकर धर्मराज बहुत गुसा हुए और बोले – मूर्ख ! जीवों को लाते-लाते बूढ़ा हो गया, फिर भी एक मामूली बूढ़े आदमी के जीव ने तुझे चकमा दे दिया । यमदूत अपनी गलती पर बहुत शर्मिंदा हुआ । तभी चित्रगुप्त ने कहा – महाराज, आजकल पृथ्वी पर इस प्रकार का कारोबार बहुत चल रहा है । लोग दोस्तों को कुछ भेजते हैं और उसे रास्ते में ही रेलवे वाले उड़ा लेते हैं । राजनीतिक दलों के नेता विरोधी नेता को उड़ाकर बंद कर देते हैं । कहीं भोलाराम के जीव को भी किसी विरोधी ने मरने के बाद दुर्गति करने के लिए तो नहीं उड़ा दिया ? इतने में धर्मराज ने चित्रगुप्त की ओर देखते हुए व्यंग्यात्मक ढंग से कहा – तुम्हारी भी रिटायर होने की उम्र आ गई, भला भोलाराम जैसे नगण्य, दीन आदमी से किसी को क्या लेना-देना ? इतने में नारद मुनि भी वहाँ पर आ गए और धर्मराज को चिंतित देखकर उनसे कारण पूछे तो धर्मराज ने उत्तर दिया – भोलाराम नाम के एक आदमी की पाँच दिन पहले मृत्यु हुई, जब यह दूत उसके जीव को ला रहा था तो वह इसे रास्ते में चकमा देकर भाग निकला । नारद ने पूछा – उस पर इनकम टैक्स बकाया तो नहीं था ? हो सकता है, उन लोगों ने रोक लिया हो । इस पर चित्रगुप्त ने कहा कि इनकम होती तो न टैक्स होता, भूखमरा था ⃒ तभी नारद बोले कि मुझे उसका नाम, पता बताइए, मैं पृथ्वी पर जाता हूँ । तत्पश्चात, चित्रगुप्त ने रजिस्टर देखकर बताया – उसका नाम भोलाराम था, जबलपुर शहर में घमापुर मोहल्ले में नाले के किनारे एक डेढ़ कमरे के टूटे-फूटे मकान में वह परिवार साथ रहता था, उसकी एक स्त्री थी, दो लड़के और एक लड़की । लगभग साठ साल की उम्र थी उसकी। सरकारी नौकरी में था, जो पाँच साल पहले रिटायर हो गया था। जब मकान का किराया वर्ष भर से नहीं चुका पाया तो मकान मालिक उसे निकालना चाहता था। जबतक भोलाराम ही संसार को छोड़कर चल बसा। तलाश के सिलसिले में नारद बाबू के पास गए। उसने तीसरे के पास भेजा, तीसरे ने चौथे के पास, चौथे ने पाँचवें के पास। जब नारद पचीस-तीस बाबुओं और अफ़सरों के पास घूम आए तब एक चपरासी ने कहा – महाराज, आप क्यों इस झंझट में पड़ गए। आप साल भर भी यहाँ का चक्कर लगाते रहें तो भी काम नहीं होगा। आप सीधे बड़े साहब से मिलिए, उन्हें खुश कर दिया दो अभी तुरंत आपका काम हो जाएगा। जब नारद ने बड़े साहब के कमरे में पहुँचा तो साहब बहुत नाराज़ होकर कहने लगे – इसे कोई मंदिर-वंदिर समझ लिया है क्या ? धड़धड़ाते चले आए ! चिट क्यों नहीं भेजी ? जवाब में नारद ने बोला – आपका चपरासी सो रहा है। तभी साहब ने रौब से पूछा – क्या काम है ? इतने में नारद ने भोलाराम का पेंशन-केस के बारे में बतलाया। तभी साहब बोले – आप हैं वैरागी, दफ्तरों के रीति-रिवाज़ नहीं जानते। यहाँ पर दान-पुण्य भी करना पड़ता है। साहब का इशारा सीधे-सीधे रिश्वत की गड्डियों से था। बल्कि बदले में जब साहब ने नारद की वीणा का मांग किया तो उन्हें अपना वीणा देते हुए बोले – यह लीजिए, अब जरा जल्दी भोलानाथ की पेंशन का आर्डर निकाल दीजिए। नारद की बात सुनकर साहब ख़ुश हो गए, नारद को कुर्सी दी और चपरासी को बुलवाया। चपरासी को फाइल लाने को कहा। कुछ ही देर में चपरासी भोलाराम की सौ-डेढ़ सौ दरख्वास्तों से भरी फाइल लेकर आया। उसमें पेंशन के कागज़ात भी थे। साहब ने फाइल का नाम देखा और निश्चित करने के लिए पूछा – क्या नाम बताया साधुजी आपने ? नारद ने जवाब में बोला – भोलाराम। तभी अचानक फाइल में से आवाज़ आई – कौन पुकार रहा है मुझे ? पोस्टमैन है ? क्या पेंशन का आर्डर आ गया ? आवाज़ सुनते ही नारद चौंके, लेकिन तुरंत वे मामले को समझ गए और बोले – भोलाराम ! तुम क्या भोलाराम के जीव हो ? तभी आवाज़ आई – हाँ। नारद ने भोलाराम को समझाते हुए कहा – मैं नारद हूँ, तुम्हें लेने आया हूँ, चलो तुम्हारा स्वर्ग में इंतज़ार हो रहा है ⃒ तभी आवाज़ आई – मुझे नहीं जाना, मैं तो पेंशन की दरख्वास्तों में अटका हूँ। यहीं मेरा मन लगा है। मैं इसे छोड़कर कहीं नहीं जा सकता।Read more on Sarthaks.com - https://www.sarthaks.com/639466/

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