भूमंडलीय उपक्रम अन्य व्यवसाय संगठन से श्रेष्ठ क्यों माने जाते है?
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Answer:
भूमंडलीय उपक्रम अन्य व्यवसाय संगठन से श्रेष्ठ निम्नलिखित विशेषताओं से माने जाते है :
विशाल पूंजीगत संसाधन :
इन उपक्रमों के पास काफी मात्रा में पूंजी होती है जिससे ये विभिन्न स्रोतों से धन जुटा सकते हैं ; जैसे समता अंश, ऋण पत्र एवं बांध जारी करना , वित्तीय संस्थानों एवं अंतरराष्ट्रीय बैंकों से ऋण लेना , पूंजी बाजार से धन प्राप्त करना आदि।
विदेशी सहयोग :
ये कंपनियां किसी भी देश की सार्वजनिक या निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ गठबंधन करके उस देश में अपने उत्पाद का विक्रय कर सकती हैं । बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सहयोग से अन्य कंपनियां भी लाभान्वित हो सकती हैं।
उन्नत तकनीक :
इनके पास उत्पादन की उत्तम उन्नत तकनीकें होती हैं। अतः वे जिस किसी भी देश में व्यवसाय हेतु जाती है , उस देश के औद्योगिक विकास को स्वयं ही बढ़ावा मिलता है। इससे स्थानीय साधनों एवं कच्चे माल का श्रेष्ठतम उपयोग भी संभव होता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा प्रदान की गई तकनीकी प्रगति के कारण कम्प्यूटरीकरण और अन्य आविष्कार हुए हैं।
केंद्रीकृत नियंत्रण :
कर्मों का मुख्य कार्यालय इनके अपने ही देश में स्थित होता है तथा यह अपनी समस्त शाखाओं एवं सहायक इकाइयों पर पूरा नियंत्रण रखते हैं, और ये रोज के कार्यों में हस्तक्षेप बिल्कुल नहीं करते हैं।
उत्पादन में नवीनता :
इन उपकरणों के उच्च आधुनिक अनुसंधान एवं विकास विभाग होने के कारण ये नए उत्पादों के विकास एवं वर्तमान उत्पादों की उत्तम डिज़ाइन बनाने को हमेशा तैयार रहते हैं । जिसके फलस्वरूप इनके उत्पाद करने क्रय करने के लिए उपभोक्ता में रुचि बनी रहती है।
बाज़ार क्षेत्र का विस्तार :
इन उपकरणों का कार्यक्षेत्र विदेशों में भी होता है अतः इनकी विपणन सीमा में विस्तार होता है। अपने विशाल आकार के कारण वे बाजार में एक प्रमुख स्थान पर काबिज हैं
रोजगार के अवसर :
बड़े पैमाने पर संगठन होने के कारण उनके द्वारा अनेक लोगों को रोज़गार के अवसर प्राप्त होते हैं।
आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।
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Answer:
Explanation:
किसी भी उपक्रम के संगठन का निर्माण करने के लिए जो आवश्यक कदम उठाये जाते हैं, वे निम्न प्रकार से हैं -
(1) उद्देश्यों का निर्धारण करना -संगठन प्रक्रिया का प्रथम कदम संस्था के उद्देश्यों का निर्धारण करना है। संस्था के उद्देश्यों के निर्धारण के अभाव में संगठन का कोई महत्त्व नहीं रहता। वास्तव में संगठन का अपने आप में कोई उद्देश्य नहीं होता, यह तो उद्देश्यों की प्राप्ति का साधन है।
(2) कार्यों को परिभाषित करना - कार्यों को परिभाषित करते समय संस्था द्वारा किये जाने वाले समस्त कार्यों को परिभाषित किया जाता है। कार्यों को परिभाषित करते समय संस्था के उद्देश्यों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। प्रत्येक कार्य को उपकार्यों में विभाजित किया जाता है जिससे कि उने कर्मचारियों में बाँटा जा सके और उनका दायित्व निर्धारित किया जा सके।
(3) कर्मचारियों के मध्य कार्य का विभाजन - क्रियाओं को श्रेणीबद्ध करने के उपरान्त अगला कदम है, कार्यों का कर्मचारियों के मध्य विभाजन करना। कार्य विभाजन में कर्मचारियों की रूचि, शारीरिक क्षमता, शैक्षणिक योग्यता, कार्य अनुभव आदि को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।
(4) समन्वय - संगठन संरचना की अन्तिम प्रक्रिया है। विभिन्न विभागों के बीच समन्वय स्थापित करना, जिससे कि उपक्रम के समस्त विभाग एकजुट होकर संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति में प्रयत्नशील हो सकें। विभिन्न विभागों के बीच सम्बन्धों को परिभाषित करना ही संगठन प्रक्रिया की अन्तिम कड़ी होती है।
(5) क्रियाओं को श्रेणीबद्ध करना - समान प्रकृति अथवा सम्बन्धित क्रियाओं को श्रेणीबद्ध किया जाता है। क्रियाओं के श्रेणीबद्ध करने से विभागों तथा उपविभागों का निर्माण होता है।
(6) व्युत्पन्न उद्देश्यों, नीतियों तथा योजनाओं का निर्माण
(7) क्रियाओं का उपलब्ध मानवीय एवं भौतिक साधनों की दृष्टि से श्रेणीबद्ध करना जिससे कि साधनों का अधिकतम उपयोग हो सके।
(8) क्रियाओं की विभिन्न श्रेणियों का परस्पर गठबन्धन। इस प्रकार का गठबन्धन क्षितिजीत तथा ऊध्वधिर हो सकता है।
(9) अधिकारों का प्रत्यायोजन - कर्मचारियों के मध्य कार्य वितरण द्वारा उन्हें कार्य सम्पादन व उत्तरदायित्व सौंप दिया जाता है। उत्तरदायित्व की पूर्ति के लिए उत्तरदायित्व के अनुरूप अधिकार भी कर्मचारियों को सौंपे जाने चाहिए