भूमा का सुग और उसकी महत्ता का जिसको आभास मात्र हो जाता है, उसको ये नश्वर चमकीले प्रदर्शन नहीं अभिभूत कर सकते, दूत! वह किसी बलवान की इच्छा का क्रीड़ा कंदूक नहीं बन सकता! m.a. फर्स्ट ईयर हिंदी गद्यांश क्वेश्चन संदर्भ प्रसंग व्याख्या
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गद्यांश का संदर्भ व्याख्या
भूमा का सुख और उसकी महत्ता का जिसको आभास मात्र हो जाता है, उसको ये नश्वर चमकीले प्रदर्शन नहीं अभिभूत कर सकते, दूत! वह किसी बलवान की इच्छा का क्रीड़ा कंदूक नहीं बन सकता!
हिंदी गद्यांश क्वेश्चन संदर्भ प्रसंग व्याख्या
प्रसंग : यह गद्यांश जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित 'चंद्रगुप्त' नामक उपन्यास से लिया गया है। यह प्रसंग उस समय का है, जब उपन्यास का एक पात्र दाण्डयायन एनिसाक्रीटिज से बात कर रहा है।
व्याख्या : दाण्डयायन हंसकर कह रहा है, जिसको परम सत्य ईश्वर के सुख और उसके महत्व का पता चल जाता है, जो ईश्वर के शुभ को समझ लेता है, उसको प्रिय नश्वर संसार जरा भी अच्छा नहीं लगता। बड़ी से बड़ी इच्छा उसका कुछ नहीं कर सकती। वह इच्छाओं का गुलाम नहीं रहता। तुम्हारा राजा अभी मात्र जेहलम भी पार नहीं कर पाया है। फिर भी वह पूरे संसार को जीतने की ख्वाहिश रखता है।
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चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न हदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न। हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा में रहती थी टेव।वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य संतान। जिएँ तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमार