भूमा का सुग औऱ उसकी महत्ता का आभासमात्र हो जाता हो उसको ये नश्वर चमकीले प्रदर्सन नही अभिभूत कर सकते दूत वह किसी बलवान की ईच्छा का क्रीड़ा कंदुक नही बन सकता?
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अन्य संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य-
मुगल भू-राजस्व दर क्या थी
मुगल भू-राजस्व अधिकारी
मुगलों की भू राजस्व प्रणाली
मुगल काल में जागीरदारी प्रथा कैसी थी
मुगल साम्राज्य का अधिकांश भाग भूमिदान के रूप में दिया गया था। भूमिदान निम्न प्रकार के होते थे-
जागीर –
वह भूमि जो मनसबदारों को उनके वेतन के बदले में दी जाती थी।यह हस्तानांतरित भी होती थी।
वतनजागीर-
यह अधीनस्थ राजाओं को उनके ही शासन क्षेत्र में दी गयी जागीर होती थी।इस पर उसका वंशानुगत अधिकार होता था।यह हस्तांतरित नहीं होती थी। सर्वप्रथम वतनजागीर को साम्राज्य में मिलाने का प्रयास औरंगजेब ने मारवाङ के संदर्भ में किया था।
मदद-ए-माश-
इसे सयूरगल और मिल्क (अमलाक) भूमि के रूप में जाना जाता था।राजस्थान में इसे शासन कहा जाता था यह भूमि दान स्थायी एवं वंशानुगत होता था। यद्यपि अकबर इस अधिकार का स्वयं उपभोग करता था।यह भूमि स्थानान्तरित नहीं होती थी और अनुदानग्राही के पास वंशानुगत रूप से रहती थी।
ऐम्मा –
यह भूमि प्रार्थना एवं प्रशंसा के लिए मुस्लिम धर्म-विदो एवं उलेमाओं को दी जाती थी।
वक्फ-
धार्मिक कार्यों के लिए संस्थाओं को दी जाने वाली भूमि एवं धन संपत्ति आदि थी।
अलतमगा –
जहाँगीर द्वारा प्रारंभ की गयी यह तैमूरी परंपरा पर आधारित था। यह विशेष शाही कृपा प्राप्त धार्मिक व्यक्ति को वंशानुगत रूप से दी जाती थी। इसे विशेष परिस्थिति में शाही आदेश द्वारा ही रद्द किया जा सकता था। यह मदद-ए-माश के अनुरूप ही होती थी।