भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाने के लिए 4 उपाय लिखिए
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भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए गोबर की खाद का उचित उपयोग, मूंग व ढेंचा की हरी खाद, फसल अवशेषों को न जलाना आदि उपायों को अपनाना चाहिए। संतुलित खादों का प्रयोग करना चाहिए। डॉ. आरएस अंतिल ने कृषि विज्ञान केंद्र में पौधरोपण किया।
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उर्वरकों को सही चुनाव- उर्वरकों का प्रयोग फसल एवं भूमि की बनावट के आधार पर ही आवश्यकतानुसार करना चाहिए। उर्वरकों की आवश्यक मात्रा का जानकारी के लिये मिट्टी की जांच कराना जरूरी होता है।
खेत का समतलीकरण- भूमि की उर्वरता सुरक्षित रखने के लिए खेत को समतल होना भी आवश्यक रहता है अन्यथा बरसात के दिनों में या सिचाई करने पर खेत की ढाल की ओर पानी के साथ-साथ मिट्टी एवं पोषक तत्व बहकर नष्ट हो जाएंगे।
कार्बनिक खादों का प्रयोग - भूमि में रसायनिक उर्वरकों जैसे यूरिया, डाई अमोनियम फास्फेट, म्यूरेट आफ पोटाश के साथ-साथ कार्बनिक खादे जैसे गोबर की खाद, तथा विभिन्न फसलों के अवशेषों का भी प्रयोग करना चाहिए। केवल रसायनिक उर्वरकों के लगातार प्रयोग करने से मिट्टी फसलोत्पादन के अयोग्य हो सकती हैं।
फसल चक्र अपनाये- भूमि की पोषक तत्व क्षमता का भरपूर उपयोग करने हेतु फसल चक्र को अपनाना आवश्यक होता है। जैसे अधिक गहराई तक जड़ वाली फसले उगानी चाहिए इस प्रकार मृदा के विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध पोषक तत्वों का भरपूर उपयोग हो जाता है।
दलहनी फसलें भी उगायें- अन्य फसलों के साथ-साथ दलहनी फसलों को भी उगाना चाहिए क्योंकि इन फसलों की जड़ों में सहजीवी जीवाणु वायुमण्डल से नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते है। दलहनी फसले जैसे बरसीम, रिजका, मटर, चना, लोविया, सनई, ढैचा, ग्यार, मूग, व उरद आदि है। अनुकूल परिस्थितियों में ये फसले लगभग 40 किग्रा से 150 किग्रा0 तक नाइट्रोजन प्रति एकड़ प्रति वर्ष जमा करती हैं।