भूमि संसाधन के पश्चात दूसरा सबसे संसाधन कौन सा है
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Explanation:
जलीय चक्र 3.1 प्रस्तावना
संसाधन एक ऐसी प्राकृतिक और मानवीय सम्पदा है, जिसका उपयोग हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में करते हैं। दूसरे शब्दों में मानवीय-जीवन की प्रगति, विकास तथा अस्तित्व संसाधनों पर निर्भर करता है। प्रत्येक प्राकृतिक संसाधन मानव-जीवन के लिये उपयोगी है, किंतु उसका उपयोग उपयुक्त तकनीकी विकास द्वारा ही संभव है। भूमि, सूर्यातप, पवन, जल, वन एवं वन्य प्राणी मानव-जीवन की उत्पत्ति से पूर्व विद्यमान थे। इनका क्रमिक विकास तकनीकी के विकास के साथ ही हुआ। इस प्रकार मनुष्य ने अपनी आवश्यकतानुसार संसाधनों का विकास कर लिया है। स्पष्ट है कि पृथ्वी पर विद्यमान तत्वों को, जो मानव द्वारा ग्रहण किये जाने योग्य हो, संसाधन कहते हैं। जिम्मरमैन ने लिखा है कि, संसाधन का अर्थ किसी उद्देश्य की प्राप्ति करना है, यह उद्देश्य व्यक्तिगत आवश्यकताओं तथा समाजिक लक्ष्यों की स्तुति करना है। इस पृथ्वी पर कोई भी वस्तु संसाधन की श्रेणी में तभी आती है जब वह निम्नलिखित दशाओं में खरी उतरती है-
(1) वस्तु का उपयोग संभव हो।
(2) इसका रूपान्तरण अधिक मूल्यवान तथा उपयोगी वस्तु के रूप में किया जा सके।
(3) जिसमें निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति की क्षमता हो।
(4) इन वस्तुओं के दोहन की योग्यता रखने वाला मानव संसाधन उपलब्ध हो।
(5) संसाधनों के रूप में पोषणीय विकास करने के लिये आवश्यक पूँजी हो।
संसाधन शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘Resource’ शब्द का पर्याय है जो दो शब्दों Re तथा source से मिलकर बना है जिनका आशय क्रमशः Re = दीर्घ अवधि या पुनः तथा source = साधन या उपाय है। अर्थात प्रकृति में उपलब्ध वे साधन जिन पर कोई जैविक समुदाय दीर्घ अवधि तक निर्भर रह सके तथा पुनः पूर्ति-या पुनर्निमाण की क्षमता हो। उदाहरण के लिये प्रकृति में वायु तथा सूर्य का प्रकाश दीर्घ अवधि तक मिलते रहेंगे जबकि वनस्पति को पुनः उत्पादित किया जा सकता है। स्पष्ट है संसाधन प्रकृति में पाया जाने वाला ऐसा पदार्थ, गुण या तत्व होता है जो मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता रखता हो। संसाधन दृष्टिगत व अदृश्य दोनों रूपों में पाये जाते हैं। दृश्यमान संसाधनों में जल, भूमि, खनिज, वनस्पति आदि प्रमुख हैं। मानव जीवन, उसका स्वास्थ्य, इच्छा, ज्ञान, सामाजिक सामंजस्य, आर्थिक उन्नति आदि महत्त्वपूर्ण अदृश्य संसाधन हैं।