भू- प्रबंधन के लिए कौन से तरीके अपनाए जा सकते है
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भूमि उपयोग वर्गीकरण
वन
बंजर तथा कृषि अयोग्य भूमि
गैर-कृषि उपयोग हेतु प्रयुक्त भूमि
कृषि योग्य बंजर
स्थायी चारागाह एवं पशुचारण
वृक्षों एवं झाड़ियों के अंतर्गत भूमि
चालू परती
अन्य परती
भूमि तथा इनके उत्पादों के निक्षेपण को रोकने तथा नियंत्रित करने के लिए उचित भू-संरक्षण पद्धतियों तथा इंजीनियरी ढांचों का प्रयोग करना।
2- खेतों में खूंटी तथा ठूंठ छोड़ना तथा मृदा पर वनस्पतियों या घास के सघन आवरण को बनाए रखना।
3- मृदा नमी की सुरक्षा करना एवं हानियों को रोकने के लिए जुताई, गुड़ाई का विकसित ढंग, मल्च तथा फसलोत्पादन की विकसित पद्धतियों का उपयोग।
4- अपवाह तथा कटाव अपरदन क्षति को कम करने के लिए समोच्च पट्टी, फसलोत्पादन तथा कंटूर खेती की पद्धति का उपयोग करना। ढाल के लम्बवत कंटूर रेखा पर निर्मित पट्टियों पर फसल उगाने से पानी के बहाव में रुकावट आती है। ऐसा होने से पानी भूमि पर अधिक समय तक रुकता है तथा अंतः जल संभरण बढ़ जाता है।
5- अत्यधिक वर्षा की अवधि में जल को ठिकाने लगाने के लिए तथा मृदा नमी को सुरक्षित रखने के लिए सीढ़ीदार खेतों का निर्माण करना। सीढ़ीदार खेतों का निर्माण भूसंरक्षण का एक स्थाई तथा संतोषजनक तरीका है, यद्यपि यह बहुत महंगा है।
6- भूसंरक्षण के लिए उचित फसलचक्र का उपयोग करना। फसलचक्र या सस्यावर्तन का अर्थ है उसी खेत पर एक निश्चित अवधि में फसलों के दल को नियमित तरीके से एक के बाद एक उगाना। कम वनस्पतियों वाली फसलों को लगातार उगाने से अपरदन अधिक होता है। मृदा संरक्षण कार्य में ऐसे फसल चक्र का चुनाव करना चाहिए जिससे अधिकाधिक समय तक घास व दाल वाली फसलें
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