Hindi, asked by niharikat809, 3 months ago

भोर हुई पेड़ों की बीन बोलने लगी,सोने का कलश लिए उषा चली आ रही है,
पात-पात हिले डाल-डाल डोलने लगी।माथे पर दमक रही आभा सिंदूर की।
कहीं दूर किरणों के तार झनझना उठे,धरती को परियों के सपनीले प्यार में,
सपनों के स्वर डूबे धरती के गान में।नई चेतना नई उमंग बोलने लगी।
लाखों ही लाख दीए तारों के खो गए,कुछ ऐसे मोर की बयार गुनगुना उठी,
पूरब के अधरों की हल्की मुस्कान में।अलसाए कुहरे की बाँह सिमटने लगी।
कुछ ऐसे पूरब के गाँव की हवा चली,नरम-नरम किरणों की नई धूप में,
खपरैलों की दुनिया आँख खोलने लगी।राहों के पेड़ों की छाँह लिपटने लगी।
जमे
हुए धुएँ-सी पहाड़ी है दूर की,लहराई माटी की धुली-धुली चेतना,
काजल की रेख-सी कतार है खजूर की।फसलों पर चुहचुहिया पाँख बोलने लगी।​

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Answered by pralhadsuryawanshi37
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Answer:

hi it's me do you know my self.thanks for reply

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