Hindi, asked by devansh032, 3 months ago

' भोर और बरखा ' कविता का भाव अपने शब्दों में लिखिए I​

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Answered by anshappanna13
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gigihihgghigfdywess

Answered by kanchanprasad1975
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1.जागो बंसीवारे ललना!

जागो बंसीवारे ललना!जागो मोरे प्यारे!

जागो बंसीवारे ललना!जागो मोरे प्यारे!रजनी बीती, भोर भयो है, घर-घर खुले किंवारे।

जागो बंसीवारे ललना!जागो मोरे प्यारे!रजनी बीती, भोर भयो है, घर-घर खुले किंवारे।गोपी दही मथत, सुनियत हैं कंगना के झनकारे।।

जागो बंसीवारे ललना!जागो मोरे प्यारे!रजनी बीती, भोर भयो है, घर-घर खुले किंवारे।गोपी दही मथत, सुनियत हैं कंगना के झनकारे।।उठो लालजी! भोर भयो है, सुर-नर ठाढ़े द्वारे।

जागो बंसीवारे ललना!जागो मोरे प्यारे!रजनी बीती, भोर भयो है, घर-घर खुले किंवारे।गोपी दही मथत, सुनियत हैं कंगना के झनकारे।।उठो लालजी! भोर भयो है, सुर-नर ठाढ़े द्वारे।ग्वाल-बाल सब करत कुलाहल, जय-जय सबद उचारै।।

जागो बंसीवारे ललना!जागो मोरे प्यारे!रजनी बीती, भोर भयो है, घर-घर खुले किंवारे।गोपी दही मथत, सुनियत हैं कंगना के झनकारे।।उठो लालजी! भोर भयो है, सुर-नर ठाढ़े द्वारे।ग्वाल-बाल सब करत कुलाहल, जय-जय सबद उचारै।।माखन-रोटी हाथ मँह लीनी, गउवन के रखवारे।

मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सरण आयाँ को तारै।।

Ans: भोर और बरखा कविता का भावार्थ: मीरा बाई के इस पद में वो यशोदा माँ द्वारा कान्हा जी को सुबह जगाने के दृश्य का वर्णन कर रही हैं।

यशोदा माता कान्हा जी से कहती हैं कि ‘उठो कान्हा! रात ख़त्म हो गयी है और सभी लोगों के घरों के दरवाजे खुल गए हैं। ज़रा देखो, सभी गोपियाँ दही को मथकर तुम्हारा मनपसंद मक्खन निकाल रही हैं। हमारे दरवाज़े पर देवता और सभी मनुष्य तुम्हारे दर्शन करने के लिए इंतज़ार कर रहे हैं। तुम्हारे सभी ग्वाल-मित्र हाथ में माखन-रोटी लिए द्वार पर खड़े हैं और तुम्हारी जय-जयकार कर रहे हैं। वो सब गाय चराने जाने के लिए तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं। इसलिए उठ जाओ कान्हा!

2.बरसे बदरिया सावन की।

2.बरसे बदरिया सावन की।सावन की, मन-भावन की।।

2.बरसे बदरिया सावन की।सावन की, मन-भावन की।।सावन में उमग्यो मेरो मनवा, भनक सुनी हरि आवन की।

2.बरसे बदरिया सावन की।सावन की, मन-भावन की।।सावन में उमग्यो मेरो मनवा, भनक सुनी हरि आवन की।उमड़-घुमड़ चहुँदिस से आया, दामिन दमकै झर लावन की।।

2.बरसे बदरिया सावन की।सावन की, मन-भावन की।।सावन में उमग्यो मेरो मनवा, भनक सुनी हरि आवन की।उमड़-घुमड़ चहुँदिस से आया, दामिन दमकै झर लावन की।।नन्हीं-नन्हीं बूँदन मेहा बरसे, शीतल पवन सुहावन की।

2.बरसे बदरिया सावन की।सावन की, मन-भावन की।।सावन में उमग्यो मेरो मनवा, भनक सुनी हरि आवन की।उमड़-घुमड़ चहुँदिस से आया, दामिन दमकै झर लावन की।।नन्हीं-नन्हीं बूँदन मेहा बरसे, शीतल पवन सुहावन की।मीरा के प्रभु गिरधर नागर! आनंद-मंगल गावन की।।

Ans:भोर और बरखा कविता का भावार्थ: अपने दूसरे पद में मीराबाई सावन का बड़ा ही मनमोहक चित्रण कर रही हैं। पद में उन्होंने बताया है कि सावन के महीने में मनमोहक बरसात हो रही है। उमड़-घुमड़ कर बादल आसमान में चारों तरफ फैल जाते हैं, आसमान में बिजली भी कड़क रही है। आसमान से बरसात की नन्ही-नन्ही बूँदें गिर रही हैं। ठंडी हवाएं बह रही हैं, जो मीराबाई को ऐसा महसूस करवाती हैं, मानो श्रीकृष्ण ख़ुद चलकर उनके वास आ रहे हैं।

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