भ्रातृ-प्रेम पर कविता।
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भैया तेरी कमी,
आज होती है महसूस,
ससुराल में आकर जब याद आती है,
तो हो जाती हूँ मायूस।
इतने बरस तो भैया के साथ,
साथ जीना सिखाया भगवान ने,
एक ही पल में जाने क्यों,
दूर कर दिया भगवान ने।
माँ कहती पराया धन है,
पापा कहते मेरा राजा बेटा है,
कहाँ दूर भेज रहा हूँ बिटिया,
वो भी तो किसी का बेटा है।
ऐसा नहीं है कि ये घर नहीं है,
ऐसा नहीं है कि कोई कमी है यहाँ,
प्यार यहाँ भी सभी करते हैं,
पर जाने क्यों याद तेरी आती है यहाँ।
वैसे तो ससुर जी है पापा की तरह,
सासु जी है मेरी माता का स्वरूप,
जेठानी जी तो है बहन जैसी,
और देवर तो जैसे भाई का रूप।
जब वो आते है दफ़्तर से,
खो जाती है सारी मायूसी मेरी,
जब चले जाते है वो अगली सुबह,
तो फिर याद आती है मुझे तेरी।
मैं भी भैया कितनी पागल हूँ,
झगड़ती थी तुझसे जब थी मैं वहाँ,
अब जब समझती हूँ सब कुछ,
तो समय चला गया जाने कहाँ।
Explanation:
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Explanation:
भारत हमको जान से प्यारा है,
ये तो सारे जहां से न्यारा है।
सर हिमालय है इसका,
कश्मीर इसका ताज है।
लहराता है तिरंगा शान से,
शांति का, अमन का देता ये पैगाम है।
इसकी रक्षा के लिए तो,
जान भी अपनी कुर्बान है।
जिसने सारे जग को अमन का पैगाम दिया,
उसका हम करते गुणगान हैं।
जिसे सारी दुनिया गुरु मानती है,
ऋषि-मुनियों की इस पावन धरा को,
'नाना' का बारंबार प्रणाम है।
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