Hindi, asked by sumitsona1400, 6 months ago

भ्रमण गति पाठ के आधार पर उद्धव और गोपियों के वार्तालाप को दर्शाए​

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Answered by shreenath13
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Answer:

ऊधौ मन ना भये दस-बीस

एक हुतो सो गयौ स्याम संग, कौ आराधे ईस॥1॥

भ्रमर गीत में सूरदास ने उन पदों को समाहित किया है जिनमें मथुरा से कृष्ण द्वारा उद्धव को ब्रज संदेस लेकर भेजा जाता है और उद्धव जो हैं योग और ब्रह्म के ज्ञाता हैं उनका प्रेम से दूर दूर का कोई सरोकार नहीं है। जब गोपियाँ व्याकुल होकर उद्धव से कृष्ण के बारे में बात करती हैं और उनके बारे में जानने को उत्सुक होती हैं तो वे निराकार ब्रह्म और योग की बातें करने लगते हैं तो खीजी हुई गोपियाँ उन्हें काले भँवरे की उपमा देती हैं। बस इन्हीं करीब १०० से अधिक पदों का संकलन भ्रमरगीत या उद्धव-संदेश कहलाया जाता है।

कृष्ण जब गुरु संदीपन के यहाँ ज्ञानाजर्न के लिये गए थे तब उन्हें ब्रज की याद सताती थी। वहाँ उनका एक ही मित्र था उद्धव, वह सदैव रीत-िनीति की, निगुर्ण ब्रह्म और योग की बातें करता था। तो उन्हें चिन्ता हुई कि यह संसार मात्र विरिक्तयुक्त निगुर्ण ब्रह्म से तो चलेगा नहीं, इसके लिये विरह और प्रेम की भी आवश्यकता है। और अपने इस मित्र से वे उकताने लगे थे कि यह सदैव कहता है, कौन माता, कौन पिता, कौन सखा, कौन बंधु। वे सोचते इसका सत्य कितना अपूर्ण और भर्ामक है। भला कहाँ यशोदा और नंद जैसे माता-पिता होने का सुख और राधा के साथ बीते पलों का आनंद। और तीनों लोकों में ब्रज के गोप-गोपियों के साथ मिलकर खेलने जैसा सुख कहाँ? ऐसा नहीं है कि द्वारा उद्धव को ब्रज संदेस लेकर भेजते समय कृष्ण संशय में न थे, वे स्व्यं सोच रहे थे यह कैसे संदेस ले जाएगा जो कि प्रेम का ममर् ही नहीं समझता, कोरा ब्रह्मर्ज्ञान झाड़ता है।

तबहि उपंगसुत आई गए।

सखा सखा कछु अंतर नाहिं, भरि भरि अंक लए।।

अति सुन्दर तन स्याम सरीखो, देखत हिर पछताने ।

ऐसे कैं वैसी बुधी होती, ब्रज पठऊं मन आने।।

या आगैं रस कथा प्रकासौं, जोग कथा प्रकटाऊं।

सूर ज्ञान याकौ दृढ़ किरके, जुवतिन्ह पास पठाऊं॥2॥

तभी उपंग के पुत्र उद्धव आ जाते हैं। कृष्ण उन्हें गले लगाते हैं।

दोनों सखाआें में खास अन्तर नहीं। उद्धव का रंग-रूप कृष्ण के समान ही है। पर कृष्ण उन्हें देख कर पछताते हैं कि इस मेरे समान रूपवान युवक के पास काश, प्रेमपूर्ण बुद्धि भी होती। तब कृष्ण मन बनाते हैं कि क्यों न उद्धव को ब्रज संदेस लेकर भेजा जाए, संदेस भी पहुँच जाएगा और इसे प्रेम का पाठ गोपियाँ भली भाँत पढ़ा देंगी। तब यह जान सकेगा प्रेम का ममर्।

उधर उद्धव सोचते हैं कि वे विरह में जल रही गोपियों को निगुर्ण ब्रह्म के प्रेम की शिक्षा दे कर उन्हें इस सांसारिक प्रेम से की पीड़ा मुक्ति से मुक्ति दिला देंगे। कृष्ण मन ही मन मुस्का कर उन्हें अपना पत्र थमाते हैं कि देखते हैं कि कौन किसे क्या सिखा कर आता है।

उद्धव पत्र गोपियों को दे देते हैं और कहते हैं कि कृष्ण ने कहा है कि –

सुनौ गोपी हिर कौ संदेस।

किर समाधि अंतर गति ध्यावहु, यह उनको उपदेस।।

वै अविगत अविनासी पूरन, सब घट रहे समाई।

तत्वज्ञान बिनु मुक्ति नहीं, वेद पुराननि गाई।।

सगुन रूप तिज निरगुन ध्यावहु, इक चित्त एक मन लाई।

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