भ्रमर का गुंजार
वह भी स्वाधीन,
पक्षियों का कलरव,
वह भी स्वाधीन
उदय-अस्त दिनकर का,
तिमिर-हर के अन्तर से
तिमिर का उद्गम
और तम के हृदय से
निशानाथ का प्रकाश,
सब हैं स्वाधीन,..
मेरे साथ मेरे विचार-
मेरे जाति-
मेरे पददलित-
मौन हैं-निदित हैं-
स्वप्न में भी पराधीन!
कितनी बड़ी दुर्बलता!
who can explain this poem
Answers
Answered by
0
tyrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr
Similar questions