Hindi, asked by dc10102929, 13 days ago

भ्रमरगीत परंपरा में सूरदास का स्थान दर्शाते हुए भ्रमरगीत में विरह की स्थिति समझाइये

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Answered by mewarashivam0
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Explanation:

भ्रमरगीत भारतीय काव्य की एक पृथक काव्यपरम्परा है। हिन्दी में सूरदास, नंददास, परमानंददास, मैथिलीशरण गुप्त (द्वापर) और जगन्नाथदास रत्नाकर ने भ्रमरगीत की रचना की है। भारतीय साहित्य में 'भ्रमर' (भौंरा) रसलोलुप नायक का प्रतीक माना जाता है। वह व्यभिचारी है जो किसी एक फूल का रसपान करने तक सीमित नहीं रहता अपितु, विविध पुष्पों का रसास्वादन करता है।

Answered by Mudit7260
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Answer:

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Explanation:

भ्रमरगीत परम्परा

श्रीकृष्ण गोपियों को छोङकर मथुरा चले गए और गोपियाँ विरह विकल हो गई। ... वहां गोपियों के साथ उनका वार्तालाप हुआ तभी एक भ्रमर वहां उड़ता हुआ आ गया। गोपियों ने उस भ्रमर को प्रतीक बनाकर अन्योक्ति के माध्यम से उद्धव और कृष्ण पर जो व्यंग्य किए एवं उपालम्भ दिए उसी को 'भ्रमरगीत' के नाम से जाना गया।

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