Hindi, asked by AnushkaAnu, 1 year ago

भ्रश्टाचार पर निबन्ध हिन्दी में।

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Answered by PrincePerfect
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भ्रष्टाचार का अर्थ : भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ होता है – आचार से अलग या भ्रष्ट होना। अत: यह भी कहा जाता है कि समाज स्वीकृत आचार संहिता की अवहेलना करके दूसरों को कष्ट पहुँचाकर अपने निजी स्वार्थों और इच्छाओं को पूरा करना ही भ्रष्टाचार कहलाता है। अगर दुसरे शब्दों में कहा जाये तो भ्रष्टाचार वह निंदनीय आचरण होता है जिसके परिणाम स्वरूप मनुष्य अपने कर्तव्य को भूलकर अनुचित रूप से लाभ प्राप्त करने का प्रयास करने लगता है।

भ्रष्टाचार के मूल कारण : हर बड़ी समस्या के पीछे कोई-न-कोई बड़ा कारण अवश्य होता है। इसी तरह से भ्रष्टाचार के पीछे भी बहुत से कारण हैं। वस्तुत: जहाँ पर सुख और एश्वर्य पनपता है वहीं पर भ्रष्टाचार भी पनपता है। भ्रष्टाचार के मूल में मानव का कुंठित अहंभाव , स्वार्थपरता , भौतिकता के प्रति आकर्षण , कुकर्म और अर्थ की प्राप्ति का लालच छुपा हुआ होता है।
भ्रष्टाचार के निवारण के उपाय : भ्रष्टाचार को रोकना बहुत ही मुश्किल होता है क्योंकि जब-जब इसे रोकने के लिए कदम उठाये जाते हैं तब-तब कुछ दिनों तक व्यवस्था ठीक प्रकार से चलती है लेकिन बाद में फिर से व्यवस्था में भ्रष्टाचार आ जाता है। भ्रष्टाचार एक संक्रामक रोग की तरह होता है। यह एक व्यक्ति से शुरू होता है और पूरे समाज में फैल जाता है।

अगर भ्रष्टाचार को रोकना है तो फिर से समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना करनी होगी। जब तक हमारे जीवन में नैतिकता नहीं आएगी तब तक हमारा भौतिकवादी दृष्टिकोण नहीं बदल सकता है। जब तक हमारे जीवन में नैतिकता नहीं आएगी तब तक हमारे जीवन की सारी बातें केवल कल्पना बनकर ही रह जाएँगी।


Answered by sakshu246
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प्रस्तावना : भ्रष्टाचार अर्थात भ्रष्ट + आचार। भ्रष्ट यानी बुरा या बिगड़ा हुआ तथा आचार का मतलब है आचरण। अर्थात भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है वह आचरण जो किसी भी प्रकार से अनैतिक और अनुचित हो।  

जब कोई व्यक्ति न्याय व्यवस्था के मान्य नियमों के विरूद्ध जाकर अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए गलत आचरण करने लगता है तो वह व्यक्ति भ्रष्टाचारी कहलाता है। आज भारत जैसे सोने की चिड़िया कहलाने वाले देश में भ्रष्टाचार अपनी जड़े फैला रहा है।  

आज भारत में ऐसे कई व्यक्ति मौजूद हैं जो भ्रष्टाचारी है। आज पूरी दुनिया में भारत भ्रष्टाचार के मामले में 94वें स्थान पर है। भ्रष्टाचार के कई रंग-रूप है जैसे रिश्वत, काला-बाजारी, जान-बूझकर दाम बढ़ाना, पैसा लेकर काभ्रष्टाचार के कारण : भ्रष्टाचार के कई कारण है। जैसे 1. असंतोष - जब किसी को अभाव के कारण कष्ट होता है तो वह भ्रष्ट आचरण करने के लिए विवश हो जाता है।  

2. स्वार्थ और असमानता : असमानता, आर्थिक, सामाजिक या सम्मान, पद -प्रतिष्ठा के कारण भी व्यक्ति अपने आपको भ्रष्ट बना लेता है। हीनता और ईर्ष्या की भावना से शिकार हुआ व्यक्ति भ्रष्टाचार को अपनाने के लिए विवश हो जाता है। साथ ही रिश्वतखोरी, भाई-भतीजावाद आदि भी भ्रष्टाचार को जन्म देते हैं।  

म करना, सस्ता सामान लाकर महंगा बेचना आदि।

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