भ्रष्टाचार का दानव निबंध
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Answer:
BHRASHTACHAR KA DANAV
Explanation:
’भ्रष्टाचार’ शब्द भ्रष्ट आचार शब्दों के योग से बना है। ’भ्रष्ट’ का अर्थ-निकृष्ट श्रेणी की विचारधारा और ’आचार’ का अर्थ आचरण के लिए उपयेग किया गया है। इसके वशीभूत होकर मानव राष्ट्र के प्रति कर्तव्य भूलकर अनुचित रूप से अपनी जेबें गरम करता है। भ्रष्टाचार रूपी वृक्ष का रूप ही अनोखा है। इसकी जडे़ ऊपर की ओर तथा शाखाएँ नीचे की ओर बढती हैं। इसकी विषाक्त शाखाओं पर बैठकर ही मानव, का रक्त चूस रहा है। इसी घिनौनी प्रकृति के कारण हमारे प्रयोग की हर वस्तु दूषित बना दी गई है। एक ओर तो आर्थिक अभाव का वातावरण भ्रष्टाचार को जन्म देता है, दूसरी और नैमिक मूल्यों के हृास के कारण आर्थिक विकास के कार्यक्रमों को अमली रूप् देने में बडी़ कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। विश्व के विकासमान राष्ट्र आज इसी दुष्चक्र में फँसे हुए हैं। यह सही है कि विश्व के समृद्ध विकसित राष्ट्र भी आज मूल्य वृद्धि से परेशान हैं तथा वहाँ भी सरकारी अधिकारी, व्यापारी व उद्योगपति दूध के धुुले नहीं हैं।
प्रथम जनगणना के अनुसार हमारे राष्ट्र की जनसंख्या 36 करोड़ के आस-पास थी जो 2001 की जनगणना के अनुसार 100 करोड़ को पार कर गई। इस अनुपात में जीविकोपार्जन के साधनों की कमी के करण आज भरतीय समाज में भ्रष्टाचार, मिलावट व जमाखोरी का बोलबाला है। आज मानव जीवन में विश्वबंधुत्व की भावना का ह्रास हो रहा है। अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए एक मानव दूसरे की गर्दन पर हाथ फेरने के लिए तैयार है। बेशक उसकी भावना से आदर्शवादिता का गला ही क्यों न घुट जाए। आज के इस यांत्रिक युग में प्रत्येक मानव भौतिक साधनों को जुटाने में नेत्र मूंदकर जुटा हुआ है। वह हर तरह से भ्रष्ट तरीकों को अपनाकर काला धन इकट्टा कारता जा रहा है। मानव की स्वार्थपरत ने महँगाई जैसे अभिशाप को जन्म दिया है। इस अभिशाप ने मध्यमवर्गीय परिवार की शांति को चूस डाला है। उसका हर छोटा-बड़ा सदस्य समाज में प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए भ्रष्ट साधनों को अपना रहा है। आधुनिक युग में प्रत्येक मानव भौतिक साधनों को जुटाने में नेत्र मूंदकर जुटा हुआ है। वह हर तरह से भ्रष्ट तरीकों को अपनाकर काला धन इकट्टा करता जा रहा है। मानव की स्वार्थपरता ने महँगाई जैसे अभिशाप को जन्म दिया है। इस अभिशाप ने मध्यमवर्गीय परिवार की शांति को चूस डाला है। उसका हर छोटा-बडा़ सदस्य समाज में प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए भ्रष्ट साधनों को अपना रहा है। आधुनिक युग में धन का महत्व इतना बढ़ गया है कि शाश्वत मानवीय मूल्यों को भी प्रभावित करने लगा है। प्राचीन का से ही धन-संग्रह व प्राप्ति की दौड़ चली आ रही है किन्तु मानवीय भावनाएँ धन से अधिक आदर पाती हैं।
आज का मानव धन के लालच में पड़ गया है। उसके व्यवहार में अर्थिक दृष्टिकोण प्रमुख हो गया है। यही आर्थिक दृष्टिकोण भावना के स्थान पर हिसाब को महत्वपूर्ण बना देता है। मनुष्य में समाज विभाजन की भावना उत्पन्न होती है और आवश्यकता होती है किसी तीसरे व्यक्ति की जो न्याय कर सके। यही तीसरा व्यक्ति शासन है। जब स्वयं अधिक धन हथिया लेने की बात प्रमुख हो जाती है तब जीवन की प्रक्रिया भी नौतिक से आर्थिक हो जाती है। मनुष्य अपने आन्तरिक गुणों की अपेक्षा बाहरी गुणों के विषय में अधिक चिन्तित हो जाता है। आर्थिक विकास के प्रयास में मनुष्य यथार्थवादी हो जाता है और यथार्थ का रूप उसे पैसे में दिखाई देता है। मनुष्य पैसे के द्वारा ही वर्तमान को समृद्ध बनाए रखना अपना धर्म समझता है।
स्वाधीनता के बाद भारत में बडी़-बडी़ योजनाएँ बनाई गई। शासन-पद्धति को गाँधी जी के आदर्शो पर चलाने का प्रयत्न किया गया। यद्यपि आर्थिक रूप से तो हम समृद्धि की ओर बढ़ रहे हैं, किंतु नैतिक दृष्टि से हम पतन की ओर बढ़ रहे हैं। भ्रष्टाचार का विष समाज की नाड़ियों में फैलता जा रहा है।
इस स्थिति के लिए कोई एक व्यक्ति दोषी नहीं है अपितु वह व्यवस्था दोषी है, धन को मानवता से अधिक महत्व देती है। फलतः हर प्रकार की बेईमानी द्वारा धन की प्रवृति को बल मिला है।
भ्रष्टाचार से मुक्ति पाने के लिए जनता व सरकार को मिलकर ही प्रयत्न करना होगा। शासन की सर्वोच्च शक्तियाँ भ्रष्टाचार के मूल कारणों का पता लगाकर उनके समाधान ढूँढे। साथ ही जनता अपने सम्पूर्ण नैतिक बल और साहस से भ्रष्टाचार को मिटाने का प्रयत्न करे। प्रजातांत्रिक शासन-प्रणाली में जनता की आवाज शासन तक सरलता से पहँुच जाती है। भले ही कुछ लोग स्वयं घूसखोरी और लगाव-बुझाव में न फँसे हों, लेकिन उसमंे फँसे हुए लोगो को जानते हुए भी उनके प्रति उदासीनता बरतते हैं, वे भी उतने ही अपराधी हैं।
भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए कडे़ कदम उठाने होंगे। भ्रष्टाचारियों को, चाहे वे कितने ही ऊँचे पदों पर क्यों न हो दंडित किया जाना अत्यंत आवश्यक है। उच्च पदों पर नियुक्ति और प्रोन्नति के समय उन व्यक्तियों को वरीयता मिलनी चाहिए जो भ्रष्टाचार से सर्वथा मुक्त रहे हैं। जब भ्रष्टाचारी व्यक्ति पदोन्नत हो जाता है तो ईमानदार व्यक्ति को बहुत धक्का लगता है। सरकार को ऐसे उपाय बरतने होंगे, जिलां जनता के विभिन्न कार्य नियत समय पर अवश्य पूरे हो जाएँ, ताकि भ्रष्टाचार की गुंजाइश ही न रहे। पिछले कुछ मासो वर्तमान में सरकार पर भ्रष्टाचारी के अनेक आरोप लगे हैं। इनमें रक्षा सौदों में भ्रष्टाचार का मामला तेजी से उछला जिसके कारण रक्षामंत्री को त्यागपत्र देना पडा़। फिर ताबूत कांड, पैट्रोल पंप आबंटन, भूमि घोटाला तथा तहलका कांड इसके उदाहरण हैं। इनसे सरकार की विश्वसनीयता पर आँच आई है।
निष्कर्ष रूप में कहा जाता है कि भ्रष्टाचार पर काबू पाना भारत के लिए अत्यंत आवश्यक है अन्यथा प्रगति की सभी योजनाएँ धरी की धरी रह जाएँगी। यह एक सामाजिक कोढ़ है, इसे मिटाना ही होगा।
Answer:
भ्रष्टाचार अर्थात भ्रष्ट+आचार। भ्रष्ट यानी बुरा या बिगड़ा हुआ तथा आचार का मतलब है आचरण। अर्थात भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है वह आचरण जो किसी भी प्रकार से अनैतिक और अनुचित हो।
जब कोई व्यक्ति न्याय व्यवस्था के मान्य नियमों के विरूद्ध जाकर अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए गलत आचरण करने लगता है तो वह व्यक्ति भ्रष्टाचारी कहलाता है। आज भारत जैसे सोने की चिड़िया कहलाने वाले देश में भ्रष्टाचार अपनी जड़े फैला रहा है। आज भारत में ऐसे कई व्यक्ति मौजूद हैं जो भ्रष्टाचारी है। आज पूरी दुनिया में भारत भ्रष्टाचार के मामले में 94वें स्थान पर है। भ्रष्टाचार के कई रंग-रूप है जैसे रिश्वत, काला-बाजारी, जान-बूझकर दाम बढ़ाना, पैसा लेकर काम करना, सस्ता सामान लाकर महंगा बेचना आदि। भ्रष्टाचार के कई कारण है। जानिए...
भ्रष्टाचार में मुख्य घूस यानी रिश्वत, चुनाव में धांधली, ब्लैकमेल करना, टैक्स चोरी, झूठी गवाही, झूठा मुकदमा, परीक्षा में नकल, परीक्षार्थी का गलत मूल्यांकन, हफ्ता वसूली, जबरन चंदा लेना, न्यायाधीशों द्वारा पक्षपातपूर्ण निर्णय, पैसे लेकर वोट देना, वोट के लिए पैसा और शराब आदि बांटना, पैसे लेकर रिपोर्ट छापना, अपने कार्यों को करवाने के लिए नकद राशि देना यह सब भ्रष्टाचार ही है।
* भारत में बढ़ता भ्रष्टाचार : भ्रष्टाचार एक बीमारी की तरह है। आज भारत देश में भ्रष्टाचार तेजी से बढ़ रहा है। इसकी जड़े तेजी से फैल रही है। यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया तो यह पूरे देश को अपनी चपेट में ले लेगा। भ्रष्टाचार का प्रभाव अत्यंत व्यापक है।
जीवन का कोई भी क्षेत्र इसके प्रभाव से मुक्त नहीं है। यदि हम इस वर्ष की ही बात करें तो ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जो कि भ्रष्टाचार के बढ़ते प्रभाव को दर्शाते हैं। जैसे आईपील में खिलाड़ियों की स्पॉट फिक्सिंग, नौकरियों में अच्छी पोस्ट पाने की लालसा में कई लोग रिश्वत देने से भी नहीं चूकते हैं। आज भारत का हर तबका इस बीमारी से ग्रस्त है।
भ्रष्टाचार एक बीमारी की तरह है। आज भारत देश में भ्रष्टाचार तेजी से बढ़ रहा है। इसकी जड़े तेजी से फैल रही है। यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया तो यह पूरे देश को अपनी चपेट में ले लेगा। भ्रष्टाचार का प्रभाव अत्यंत व्यापक है।
जीवन का कोई भी क्षेत्र इसके प्रभाव से मुक्त नहीं है। यदि हम इस वर्ष की ही बात करें तो ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जो कि भ्रष्टाचार के बढ़ते प्रभाव को दर्शाते हैं। जैसे आईपील में खिलाड़ियों की स्पॉट फिक्सिंग, नौकरियों में अच्छी पोस्ट पाने की लालसा में कई लोग रिश्वत देने से भी नहीं चूकते हैं। आज भारत का हर तबका इस बीमारी से ग्रस्त है।