भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन कितने सार्थक
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देश में भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या है और यही कारण है कि जब भी कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ उठ खड़ा होता हुआ दिखता है तो उसके पीछे बहुत सारे लोग यह सोचे बिना ही आ जाते हैं कि जब तक यह समर्थन किसी सार्थक परिवर्तनकारी राजनीति और राष्ट्रव्यापी संगठन के साथ नहीं जुड़ता तब तक किसी परिणिति तक नहीं पहुँच पाता। जय प्रकाश नारायण का आन्दोलन हो या वीपी सिंह का अभियान हो वे व्यापक राजनीतिक दृष्टि और संगठन के बिना चलाये गये थे इसलिए बिना कोई परिवर्तन किये बड़ी घटनाएं बन कर रह गये। आज अन्ना का आन्दोलन हो या रामदेव का वे भी इसी दोष के शिकार हैं इसलिए उनकी परिणिति भी तय है। स्मरणीय है कि विदेशों में जमा धन को वापिस लाने को भाजपा ने अपना चुनावी मुद्दा बनाया था किंतु उसे आन्दोलन का रूप देने की कोई कोशिश नहीं की। जब रामदेव और अन्ना हजारे ने इस समस्या पर आन्दोलन प्रारम्भ किये तो कई राजनीतिक दल तो इनके पीछे इसलिए आ गये ताकि इनके अभियान से उठी लहर में वे अपनी नैय्या पार लगा सकें।
भाजपा से जुड़े संगठनों ने तो साफ साफ कहा कि अन्ना के अनशन के दौरान उन्होंने न केवल संसाधनों में मदद की थी अपितु भीड़ एकत्रित करने में योगदान भी किया था। उनका यह बयान अन्ना टीम के लिए नुकसान दायक साबित हुआ था। अपनी सोच और अतीत में किये गये कारनामों के कारण भाजपा और उससे जुड़े जनसंगठन इस तरह से बदनाम हैं कि उनके सहयोग की भनक भर आन्दोलन को कमजोर करने के लिए काफी होती है इसलिए वे विपक्ष में रहते हुए भी इस विषय पर आन्दोलन नहीं छेड़ते पर उसका सम्भावित लाभ लेने के लिए परदे के पीछे से प्रयास करते हैं। स्मरणीय है कि जब अन्ना हजारे के आन्दोलन के प्रति लोगों में तीव्र आकर्षण पैदा हुआ था तब संघ ने भ्रष्टाचार के खिलाफ पहले आन्दोलन न छेड़ने के लिए भाजपा नेताओं को फटकार लगायी थी। रामदेव तो परोक्ष रूप से भाजपा से जुड़े ही रहे हैं और उनके ट्रष्ट भाजपा को विधिवत चन्दा देते आये हैं। यह अलग बात है कि उसे सार्वजनिक रूप से स्वीकारने में तब तक कतराते रहे जब तक मीडिया में प्रमाण सहित सच सामने नहीं आ गया।
एक बार असफल हो जाने के बाद अन्ना हजारे और रामदेव ने सन्युक्त होकर पुनः आन्दोलन छेड़ने की योजनाएं तैयार की हैं और भाजपा जैसे दल उसके समर्थन को लपक लेने की तैयारी करने लगे हैं। असल में यह भ्रष्टाचार के खिलाफ आक्रोशित जनता के साथ एक और धोखा है कि उसकी भावनाओं को उस दल को बेच दिया जाये जिसे जनता पसन्द नहीं करती। इस आन्दोलन में कहीं भी चुनाव प्रणाली, कार्यपालिका व न्यायपालिका में वांछित परिवर्तन का नक्शा नहीं है जिनके चलते वर्तमान में जो भी कानून हैं वे निष्प्रभावी हैं, और उनके होते हुए भी भ्रष्टाचार ने इतना बड़ा स्वरूप ग्रहण कर लिया है।