Hindi, asked by nareshshah, 1 year ago

भारत जैसा देश कहा ( 200 शब्द )

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Answered by Anamkhurshid
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एक तरफ हिमालय पर्वत श्रृंखलाएं, तो दूसरी तरफ थार मरुस्थल। इधर हिंद महासागर और अरब सागर का अनंत विस्तार तो उधर रहस्यों से लबरेज भारत के जंगल। और इनके सबके बीच भांति-भांति के लोग,उनकी भाषाएं,खान-पान,रहन-सहन,बोलियां। वाह, क्या कहने इस भारत के। मुझसे कोई कहे कि मैं भारत को तीन शब्दों में व्यक्त करूं तो मैं कहूंगा, अद्भुत,अलौकिक,चमत्कारी। इतनी विविधताओं के बावजूद भारत एक है। यह आगे बढ़ रहा है। कोई चाहे तो भारत में लाख कमियां निकाल सकता है। उसे भारत आजादी देता है। पर, मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं। मुझे भारत में, जिसे अब मैं अपना मान चुका हूं, कोई कमी नजर नहीं आती। भारत मेरा है और मैं भारत का।

स्वाधीनता दिवस एक अवसर है, जब हमें अपनी अभी तक की उपलब्धियों और कमियों पर गौर कर लेना चाहिए। हम कहां सफल रहे, कहां कमजोर पड़े, इस पर गंभीरता से चिंतन कर लेना चाहिए। मैं भारत की स्वाधीनता के बाद से अब तक उपलब्धियों पर फख्र करता हूं। आजादी के समय भारत दुनिया का दूसरा सबसे निर्धन देश था। अब वह धनी देश बनने के ख्वाब देख रहा है। करोड़ों लोग हर साल साक्षर हो रहे हैं। उनकी जिंदगी सुधर रही है। भारत दुनिया की एक शिखर आर्थिक ताकत बन चुका है। क्या ये सब मामूली बातें हैं।

कई लोग पूछते हैं कि क्या ब्रिटिश राज से भारत को कुछ मिला? मेरा उत्तर होता है कि भारत में ब्यूरोक्रेसी और जुडिशरी कमोबेश उसी तरह से चल रही है,जैसे अंग्रेज छोड़कर गए थे। ये अहम पहलू थे ब्रिटिश राज के। रेलवे को भी कुछ लोग अंग्रेजी शासन के खास योगदान के रूप में देखते हैं। लेकिन, बड़ौदा में तो वहां के राज परिवार गायकवाड़ ने रेलवे नेटवर्क बिछा दिया था। ये सब भारतीय खुद भी कर सकते थे। अंग्रेजी तो भारतीयों ने खूब मजे से सीख ली। उसका उन्हें फायदा भी हो रहा है। लेकिन इस वजह से हिंदुस्तानियों ने अपनी भाषाओं की अनदेखी की। हालांकि आमतौर पर हिंदुस्तानियों में विभिन्न भाषाओं को जानने की जबर्दस्त क्षमता होती है। एक सामान्य हिंदुस्तानी आराम से दो-तीन भाषाएं जानता ही है। यह कोई छोटी बात नहीं है।

मेरा भारत से पहला साक्षात्कार गांधीजी की वजह से हुआ था। मुझे अब भी यकीन नहीं होता कि इस तरह की शख्सियत कुछ समय पहले तक मौजूद थी। गांधीजी को जितना पढ़ा,उनके प्रति मेरा सम्मान का भाव उतना ही बढ़ता चला गया। पंडित नेहरू को भी बहुत आदर के भाव से देखता हूं। पर माफी चाहता हूं, मुझे अफसोस होता है कि आजकल बापू और नेहरू की कमियां निकालना फैशन सा हो गया है। नेहरू ने भारत को लोकतांत्रिक देश के रूप में विकसित किया। इसे सेक्युलर मुल्क बनाया। उनके चलते इस देश में तमाम संस्थाएं अपने पैर जमा पाईं। उनमें संसद तथा जुडिशरी शामिल हैं। आप नेहरू को पाकिस्तान के साथ कश्मीर विवाद और चीन से 1962 में मिली हार के लिए कोसते रहते हो। यह अच्छी बात नहीं। हमें उनके व्यक्तित्व का समग्र मूल्यांकन करना होगा। क्या नेहरू करप्शन के किसी केस में लिप्त थे? क्या वे चाहते थे कि चीन से हमें पराजय मिले? कतई नहीं। तो फिर उन्हें कोसना बंद कर दीजिए।

बेशक, आर्थिक उदारीकरण के बाद भारत आगे बढ़ा है। इसे आप सड़कों पर कारों की भीड़ से लेकर सभी शहरों में चलने वाले कंस्ट्रक्शन के काम से भी समझ सकते हैं। देश में ज्ञान हासिल करने की प्यास बढ़ी है। विकास और आधुनिकीकरण के नफा-नुकसान दोनों हैं। मैं जब दिल्ली आया तो कई बार साइकिल से भी घूमता था। तब सडकों पर आराम से साइकल चलाई जा सकती थी। अब यह बीते दौर की बातें हो गई हैं। दिल्ली में विकास ने हरियाली को रेगिस्तान में तब्दील कर दिया। परिंदे गायब हो रहे हैं। मुझे ऐसी बहुत सी चिड़िया दिखाई नहीं देतीं,जो पहले दिखती थीं। यमुना किनारे जंगली खरगोश दिखते थे। अब वे नहीं दिखते।

भारतीय जीवन में दोस्ती और बैठकी जरूरी चीजें हैं। ये पश्चिमी समाज में नहीं मिलतीं। यहां आपसी रिश्तों और एक-दूसरे को लेकर स्नेह और सम्मान का जो भाव है,वह कहीं और नहीं। भारतीय मेजबान और मेहमान बनने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। यूरोप के जीवन में बहुत अकेलापन है। सब कुछ एक जैसा, नीरस। भारत में आप कभी अकेले नहीं होते। आपके साथ हमेशा आपके दोस्त,रिश्तेदार और अन्य करीबी रहते हैं। अगर आपके ऊपर कोई संकट है, तो आपके साथ कई लोग होंगे। और एक लेखक के लिए तो भारत से बेहतरीन देश कोई और हो नहीं सकता। विशाल होने के चलते यहां कुछ न कुछ रोचक होता रहता है। यहां नए-नए पात्र मिलते हैं। मुझे भारतीय समाज या जीवन के किसी पहलू से निराशा नहीं होती। हां, अगर सरकारी दफ्तरों में कामकाज की गति तेज हो जाए तो बेहतर रहेगा।

हिंदुस्तानियों की गर्मजोशी ने मुझे भारत का कायल बनाया। विपरीत हालात में संघर्ष करने का उनका जज्बा गजब का है। आज स्वाधीनता दिवस है इसलिए मैं यह डिसकस करने के मूड में नहीं कि संसद में हंगामा हुआ या भारत का आधारभूत ढांचा बहुत खराब है। मैं जाति-धर्म को लेकर उठने वाले तनावों-विवादों पर भी कुछ कहना नहीं चाहता। आज मैं स्वाधीनता दिवस को सेलिब्रेट करने के मूड में हूं। आप भी कीजिए।

Hope it's helps

nareshshah: thankyou
Anamkhurshid: wlcm
Anamkhurshid: Please mark as brainliest
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