भारत के आजादी के पश्चात सक्रिय दलों में विपक्षी दलों के उद्भव को बताइए
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लंबी लड़ाई के बाद 1947 में जब भारत को आजादी मिली तो एक तरफ उम्मीदें थीं और दूसरी तरफ कई आशंकाएं. पश्चिमी दुनिया के एक बड़े हिस्से को लगता था कि भारत लोकतंत्र की राह पर ज्यादा दूर तक नहीं चल पाएगा. इसकी एक वजह तो उसकी असाधारण विविधता थी जिसके चलते कहा जाता था कि इस एक देश में कई देश हैं. दूसरा कारण यह था कि जिस मजबूत विपक्ष को लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था के लिए बेहद जरूरी माना जाता है वह यहां नदारद दिखता था.
इसी दौरान देश में कुछ हस्तियां हुईं जिन्होंने सत्ता का मोह छोड़कर उससे लोहा लिया और यह कमी पूरी की. इन व्यक्तित्वों ने तब सर्वशक्तिमान कहे जाने वाले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कई निर्णयों को चुनौती दी. इनमें राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण या जेपी का नाम लिया जाता है.
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