भारत के आदिम परिवारों का स्वरुप कैसा था
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भारत के आदिम परिवार
Explanation:
परिचय : अनेकता में एकता ही भारतीय संस्कृति है और उस अनेकता के मूल में निश्चित रूप से भारत के विभिन्न प्रदेशों में स्थित जनजातियाँ हैं। भारत की जनजातियाँ विभिन्न क्षेत्रों में रहती हूए अपनी संस्कृति के माध्यम से भारतीय संस्कृति को एक विशिष्ट संस्कृति का रूप में देने में योगदान करती हैं। देश की संस्कृतियों पर एक दूसरे की छाप पड़ी। चूंकि जनजातियाँ अनेक थी स्वाभाविक है कि उनकी संस्कृति में भी विवधता थी। अत: इनकी वैविध्यमय संस्कृति ने जिस भारतीय संस्कृति को उभरने में योगदान किया, वह भी विविधता को धारण करने वाली हुई। भाषा के क्षेत्र में भी यही स्थिति हुई और आर्यों की भाषा से द्रविड़ों तथा अनके भाषा – भाषियों की भाषाएँ प्रभावित हुई तथा दूसरी और इनकी भाषाओँ से आर्यों की भाषाएँ भी पर्याप्त मात्रा में प्रभावित हुई।
जनजाति की परिभाषा : उपर्युक्त सन्दर्भ में एक प्रश्न उठता है कि आखिर जनजाति कहेंगे किसे। इस जनजाति शब्द को परिभाषित करने में मानवशास्त्रियों में काफी मतभेद पाया जाता है। मानवशास्त्रियों ने जनजातियों को परिभाषित करने में मुख्य आधार – तत्व माना है संस्कृति को, परंतु कभी – कभी ऐसा देखने में मिलता है कि किसी एक ही क्षेत्र में यद्यपि विविध जनजातियाँ रहती हैं, फिर भी उनकी संस्कृति में एकरूपता दृष्टिगत होती है। अत: जनजातियों को परिभाषित करने में केवल संस्कृति को ही आधार – तत्व मानना एकांगीपन कहा जायेगा। इसके लिए हमें संस्कृति के अतिरिक्त भौगोलिक, भाषिक तथा राजनितिक अवस्थाओं को भी ध्यान में रखना आवश्यक होगा।
भारतीय मानवशास्त्री प्रोफेसर धीरेन्द्र नाथ मजुमदार ने जनजाति की व्याख्या करते हुए कहा है कि जनजाति परिवारों या परिवार समूहों के समुदाय का नाम है। इन परिवारों या परिवार – समूह का एक सामान्य नाम होता है ये एक ही भू – भाग में निवास करते हैं, एक ही भाषा बोलते हैं विवाह, उद्योग – धंधों में के ही प्रकार की बातों को निबिद्ध मानते हैं। एक- दूसरे के साथ व्यवहार के संबंध में भी उन्होंने अपने पुराने अनुभव के आधार पर कुछ निश्चित नियम बना लिए होते हैं।
उक्त परिभाषाओं को देखने से स्पष्ट हो जाता है। कि विद्वानों में जनजाति की परिभाषा को लेकर काफी मतभेद है। फिर भी व्यक्तियों के ऐसे समूह को जो एक निश्चित भू – भाग के हों तथा एक निश्चित भाषा बोलते हों और अपने समूह में ही विवाह करते हों को जनजाति कहा जा सकता है। जब तक विभिन्न देशों में सम्प्रभु सरकार की स्थापना नहीं हुई थी तब तक इन जातियों का अपना राजनैतिक संगठन रहा होगा। परंतु आज जनजाति की परिभाषा करने में यह तत्व उपेक्षणीय है।
जाति और जनजाति को पृथक कर पाना भी एक कठिन प्रश्न है, परन्तु जहाँ तक भारत का संबंध है। हम जाति उसे कह सकते हैं जिसमें वर्ण व्यवस्था नहीं हो।
भारत की जनजातियों का वर्गीकरण :
भौगोलिक वर्गीकरण : -
भारत की जनजातियों में भौगोलिक विभाजन करते हुए विभिन्न विद्वानों ने अपने - अपने दृष्टीकोण से भिन्न–भिन्न अभिमत प्रकट किए हैं। कुछेक विद्वान इन्हें दो क्षेत्रों में बांटते हैं तो कुछ तीन क्षेत्रों में और कुछ विद्वानों ने इन्हें चार भौगोलिक क्षेत्रों में विभाजित किया है। परंतु भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भारत की जनजातियों को पांच भागों में विभाजित करना उचित होगा।
1. पूर्वोत्तर क्षेत्र - पूर्वोत्तर क्षेत्र में कश्मीर, शिमला, लेह, हिमाचल प्रदेश, बंगाल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, लूसाई की पहाड़ियां, मिसमी असाम, नेचा तथा सिक्किम का इलाका आता है। इस क्षेत्र में लिम्बू लेपचा, आका, दपला, अवस्मीरी मिश्मी, रामा, कचारी, गोरो, खासी, नागा, कुकी, चकमा, लूसाई, गुरड आदि प्रमुख जनजातियाँ होती है।
2. मध्य – क्षेत्र – क्षेत्र में बंगाल मध्य क्षेत्र में बंगाल, बिहार, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा उड़ीसा का इलाका जा जाता है। सभी क्षेत्रों में जनजातियों की संख्या और उनके महत्व की दृष्टि से सबसे बड़ा है। इसके अंतर्गत, मध्य प्रदेश में गोंड, उड़ीसा के कांध और खड़िया, गंजाम के सावरा, गदब और बाँदा, बस्तर के मूरिया और मरिया, बिहार के उराँव, मुंडा, संथाल, हो विरहोर, सौरिया पहाड़िया, खड़िया, आदि जनजातियाँ हैं।
3. दक्षिण क्षेत्र – इस क्षेत्र में दक्षिणी आंध्र प्रदेश, कर्णाटक, तमिलनाडु, केरल आदि का हिस्सा आता है। इस क्षेत्र में निवास करने वाली प्रमुख जनजातियाँ है हैदराबाद में चेचू, निलगिरी के टोडा, वायनाड के परियां, ट्रावनकोर – कोचीन के कादर, कणीदर तथा कुरावन आदि।
4. पश्चिम क्षेत्र – उपर्युक्त तीन क्षेत्रों के अतिरिक्त पश्चिम क्षेत्र में भी कुछ जनजातियाँ है। उसमें राजस्थान के भील प्रमुख हैं। कुछ जनजातियाँ ऐसी हैं जो खाना बदोस का जीवन व्यतीत करती हैं।
5. द्वीप समूह क्षेत्र – अंडमान निकोबार आदि द्वीपों में रहने वाली जनजातियों को इसी क्षेत्रों में रखा जाएगा। 1955 के पहले तक इन्हें जनजाति के अंतर्गत नहीं रखा जाता था परंतु उसके बाद पिछड़ी जातियों के आयोग की अनुशंसा पर इन्हें भी जनजाति माल लिया गया। वर्तमान अंडमान निकोवार में अंडमानी, जखा, सोयपेन एवं आगे जनजाति आदि प्रमुख हैं।
भाषागत वर्गीकरण : भारत में हजारों बोली जाती हैं, जिन्हें चार भाषा परिवारों के अंतर्गत रखा जाता है।
ये भाषा परिवार हैं –
१. इंडो योरोपियन
२. द्रविड़
३. ओस्ट्रिक (आनेय)
४. तिब्बती – चीनी