Hindi, asked by dipendukaushik, 7 months ago

भारत का चौथा स्तंभ मीडिया पर अनुच्छेद लिखें help me and if u don't know the answer don't answer . I want only correct answer..

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Answered by Anonymous
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भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया लोगों के विचारों को प्रभावित करने या परिवर्तित करने में अहम भूमिका निभाता है। इसकी भूमिका के अंतर्गत न केवल राष्ट्र के समक्ष उपस्थित समस्याओं का समाधान खोजना शामिल है, बल्कि लोगों को शिक्षित तथा सूचित भी करना है ताकि लोगों में समालोचनात्मक जागरूकता को बढ़ावा दिया जा सके। परंतु विगत समय में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले हैं, जो यह बताता है कि उनका झुकाव सत्य की खोज के बजाय वाणिज्यिक हितों की ओर अधिक है।

आँकड़े यह दर्शाते हैं कि अधिकतर राजनीतिक दलों के कुल बजट का लगभग 40 प्रतिशत मीडिया संबंधी खर्चों के लिये आवंटित होता है। चुनावों में प्रयुक्त होने वाला धन बल, शराब तथा पेड न्यूज़ की अधिकता चिंता का विषय है।

भारतीय प्रेस परिषद  के अनुसार, ऐसी खबरें जो प्रिंट या इलेक्ट्रॅानिक मीडिया में नकद या अन्य लाभ के बदले में प्रसारित किये जा रहे हों पेड न्यूज़ कहलाते हैं। हालाँकि यह साबित करना अत्यंत कठिन कार्य है कि किसी चैनल पर दिखाई गई विशेष खबर या समाचारपत्र में छपी न्यूज़, पेड न्यूज़ है।

पेड न्यूज़ के मामलों में वृद्धि होने का प्रमुख कारणः भारत में अधिकतर मीडिया समूह कॉरपोरेट के स्वामित्व वाले हैं तथा केवल लाभ के लिये कार्य करते हैं। पत्रकारों की कम सैलरी तथा जल्दी मशहूर होने की चाहत भी इसका एक कारण है।

यद्यपि भारत में मास-मीडिया में भ्रष्टाचार मीडिया जितना ही पुराना है, परंतु हाल के वर्षों में यह अधिक संस्थागत एवं संगठित हो गया है, जहाँ समाचारपत्र और टी.वी. चैनल किसी विशिष्ट व्यक्ति, कॉरपोरेट इकाई, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों इत्यादि के पक्ष में धन लेकर सूचनाएँ प्रकाशित या प्रसारित करते हैं। विगत कुछ वर्षों में इसने चुनाव लड़ रहे प्रत्यार्शियों की रिपोर्टिंग करके एक नया आयाम हासिल किया है।

समस्याएँ: इससे पाठक को गलत सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी अपने चुनाव खर्च में इसे शामिल नहीं करते हैं, जो कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत लागू चुनाव नियम संहिता, 1961 का उल्लंघन है।  संबंधित समाचारपत्र तथा न्यूज़ चैनल इस आय को अपने बैलेंस शीट में नहीं दर्शाते हैं, अतः वे कंपनी अधिनियम, 1656 और आयकर अधिनियम, 1961 दोनों का उल्लंघन करते हैं।

परिणामः इन कार्यों से राजनीति में धन बल का प्रभाव बढ़ता है, जो कि लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमजोर करता है। इससे मीडिया की विश्वसनीयता खत्म हो जाती है तथा लंबे समय में यह मीडिया के लक्ष्यों के लिये नुकसानदायक हो सकता है।

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