भारत के लिए जल मार्गों का क्या महत्व है?
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उन्होंने कहा कि जल मार्ग एक बेहतर, कम लागत वाला और पर्यावरण के अनुकूल माल एवं यात्री परिवहन का माध्यम है। भारत के पास 7500 किलोमीटर से ज्यादा तटीय क्षेत्र है जबकि14,500 किमी से ऊपर नदी मार्ग है। खास कर ऐसी नदियां जिनमें साल भर पानी बहता है।
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आंतरिक जल परिवहन रेलवे के आगमन से पूर्व आंतरिक जल परिवहन का महत्वपूर्ण स्थान था। आंतरिक जल परिवहन एक सस्ता, ईधन प्रभावी तथा पर्यावरण अनुकूल तरीका है, जो भारी वस्तुओं की दुलाई हेतु उपयुक्त होता है और साथ ही रोजगार निर्माण की व्यापक क्षमता रखता है। किंतु, भारत के कुल यातायात में आंतरिक जल परिवहन का अंश केवल एक प्रतिशत है। भारत में नदी तंत्रों का 14500 किलोमीटर क्षेत्र नौचालन योग्य है।
आंतरिक जल परिवहन का प्रतिरूप: भारत के महत्वपूर्ण आंतरिक जलमार्ग इस प्रकार है-
गंगा-भागीरथी (हुगली का ऊपरी प्रवाह)-हुगली: इस भाग में क्रमिक ढाल एवं सुगम प्रवाह मौजूद है तथा सघन जनसंख्या का जमाव भी है।
ब्रह्मपुत्र एवं उसकी सहायक नदियां।
महानदी, कृष्णा एवं गोदावरी के डेल्टाई प्रवाह।
बराक नदी (उत्तर-पूर्व में)।
गोवा-मांडोवी एवं जुआरी की नदियां।
केरल के कयाल।
नर्मदा एवं ताप्ती की निचली रीच।
पश्चिमी तट पर पश्चिम की ओर प्रवाहित होने वाली नदियों की संकरी खाड़ियां, जैसे-काली, शरावती एवं नेत्रवती।
नहरें, जैसे-
बकिंघम नहर- कृष्णा डेल्टाई की कोम्मानूर नहर से लेकर माराक्कानम (चेन्नई के 100 किमी. दक्षिण में) तक।
कुम्बेरजुआ नहर-गोवा में मांडोवी एवं जुआरी को जोड़ती है।
वेदारण्यम नहर-वेदारण्यम को नागपट्टनम बंदरगाह से जोड़ती है।
आंतरिक जल परिवहन की वर्तमान स्थिति:
गंगा-भागीरथी हुगली जलमार्ग इस जलमार्ग पर यात्रियों के अतिरिक्त खाद्यान्न, कोयला, धातु अयस्क, उर्वरक, कपड़ा एवं चीनी का परिवहन किया जाता है।
ब्रह्मपुत्र: यहां जूट,चाय, लकड़ी,चावल, खाद्य तेल, मशीनरी तथा उपभोक्ता वस्तुओं का परिवहन किया जाता है।
कृष्णा-गोदावरी डेल्टा।
कोरलक पश्चजल या कयाल: इनमें नारियल, मछली, सब्जियां,ईटवखप्पर तथा इमारती लकड़ी को परिवहित किया जाता है। कोचीन बंदरगाह पर आयातित होने वाले माल का 10 प्रतिशत इन्हीं जलमागों द्वारा ढोया जाता है।
गोवा की नदियां: यहां लौह-अयस्क (मर्मगाव बंदरगाह को), मैगनीज अयस्क, मछली, नारियल एवं इमारती लकड़ी का परिवहन किया जाता है।
जब संगठित संचालनों को यंत्रीकृत नावों द्वारा किया गया; देश में निर्मित विभिन्न क्षमताओं की नावों ने भी कागों और यात्रियों का परिवहन किया।
संगठन
1967 में कलकत्ता (कोलकाता) में केंद्रीय आंतरिक जल-परिवहन निगम की स्थापना के साथ ही अन्य स्थानों पर भी शाखायें स्थापित की गई।
इसकी मुख्य जिम्मेदारी देश के आंतरिक जलमार्गों से नावों द्वारा और भारत एवं बांग्लादेश के बीच मान्य मागों से सामान का परिवहन करना है। बांग्लादेश के साथ प्रोटोकॉल समझौता भारत-बांग्लादेश वाणिज्य और बांग्लादेश से प्रेषण या परिवहन के लिए एक-दूसरे के जलमार्गों का प्रयोग करने की अनुमति देता है।