History, asked by sameerkhan9970524077, 5 months ago

भारत के लिए पुर्तगालियों से मुकाबला करना मुश्किल साबित हो रहा था ​

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Answered by ag8170432
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Answer:

आठ जुलाई 1497, शनिवार का दिन, वो दिन जिसे पुर्तगाल के शाही ज्योतिषयों ने बड़ी सावधानी से चुना था.

राजधानी लिस्बन की गलियों में जश्न का सा माहौल है. लोग जुलूसों की शकल में समंदर किनारे का रुख कर रहे हैं जहां चार नए नकोर जहाज़ एक लंबा सफ़र शुरू करने के लिए तैयार खड़े हैं.

शहर के तमाम शीर्ष पादरी भी चमकीले लिबास पहलने आशीर्वाद देने पहुंच गए हैं और समूह गान कर रहे हैं भीड़ उनकी आवाज़ से आवाज़ मिला रही है.

बादशाह रोम मैनवल इस मुहिम में व्यक्तिगत दिलचस्पी ले रहे हैं. वास्को डी गामा के नेतृत्व में चारों जहाज़ लंबे समुद्री सफ़र के लिए ज़रूरी नए उपकरणों व ज़मीनी और आसमानी नक़्शों से लैस हैं. साथ ही साथ उन पर उस दौर के आधुनिक तोपें भी तैनात हैं.

जहाज़ के 170 के क़रीब नाविकों ने बिना आस्तीन वाली क़मीज़ें पहन रखी हैं. उनके हाथों में जलती हुईं मोमबत्तियां हैं और वो एक फ़ौजी दस्ते की तरह जहाज़ों की तरफ़ धीमे-धीमे मार्च कर रहे हैं.

ये लोग उस मंज़र की एक झलक देखने और मल्लाहों को विदा करने पहुंचे हैं. उन की आंखों में ग़म और ख़ुशी के मिले जुले आंसू हैं. वो जानते हैं कि सालों लंबे इस सफर पर जाने वालों में से बहुत से, या शायद सभी, वापस नहीं आ सकेंगे.

उससे बढ़कर उन्हें ये भी अहसास है कि अगर सफ़र कामयाब रहा तो यूरोप की एक खुरदुरेपन में बसा एक छोटा सा देश पुर्तगाल दुनिया के इतिहास का एक नया पन्ना उलटने में कामयाब हो जाएगा

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