Social Sciences, asked by vijaykariyarevijayka, 4 months ago

भारत के नागरिक के रूप में सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्ता के पद का समर्थन आप कैसे करेंगे? अपने प्रस्ताव का औचित्य सिद्ध कीजिए​

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Answered by saiyedfaiyaz444
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Answered by Anonymous
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भारत को स्थायी सदस्यता मिलने से सुरक्षा परिषद की गरिमा बढ़ेगी

संयुक्त राष्ट्र की क्षमता में वृद्धि के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार अपरिहार्य हो गया है।

राहुल लाल। संयुक्त राष्ट्र के 75 वर्ष पूर्ण होने पर एक बार फिर उसमें सुधार की मांग जोर पकड़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए कहा भी है कि व्यापक सुधारों के बिना संयुक्त राष्ट्र विश्वसनीयता के संकट का सामना कर रहा है। दुनिया को एक सुधारवादी बहुपक्षीय मंच की जरूरत है, जो आज की हकीकत को प्रतिबंबित करे, सबको अपनी बात रखने का मौका दे और समकालीन चुनौतियों का समाधान कर मानव कल्याण पर ध्यान दे।

द्वितीय विश्व युद्ध का विध्वंसक रूप देखने के बाद भविष्य के युद्धों को रोकने तथा शांति स्थापित करने के लिए 24 अक्टूबर, 1945 को इसकी स्थापना की गई थी। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद से आज संपूर्ण विश्व पूरी तरह बदल चुका है। महाशक्तियों के मायने बदल गए हैं। कई देश सैन्य और आíथक ताकत के रूप में उभरे हैं। इसलिए इस बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में सबसे ज्यादा जरूरत शक्ति संतुलन की महसूस की जा रही है। इसीलिए प्रधानमंत्री ने कहा है कि सभी बदल जाएं और संयुक्त राष्ट्र नहीं बदलेगा की नीति अब नहीं चलेगी।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार क्यों जरूरी : भारत संयुक्त राष्ट्र में व्यापक सुधारों का सदैव समर्थक रहा है। सुरक्षा परिषद में सुधार 1993 से ही संयुक्त राष्ट्र के एजेंडे में है। संयुक्त राष्ट्र का अस्तित्व ही सुरक्षा परिषद पर आधारित है। उसके सारे कार्यक्रम तब तक कार्यरूप नहीं ले सकते, जब तक सुरक्षा परिषद की उस पर स्वीकृति नहीं हो। संयुक्त राष्ट्र का बजट भी सुरक्षा परिषद के अधीन है। उसकी स्वीकृति के बिना बजट के लिए न तो धन की आपूíत हो सकती है और न ही तमाम बिखरे कार्य ही पूरे किए जा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र का जब गठन हुआ था, तब 51 देश इसके सदस्य थे, परंतु अब यह संख्या 193 हो चुकी है। ऐसे में सुरक्षा परिषद के विस्तार की अपरिहार्यता समझी जा सकती है। हालांकि 1965 में इसका एक बार विस्तार किया गया था। मूल रूप से इसमें 11 सीटें थीं-5 स्थायी और 6 अस्थायी। विस्तार के बाद सुरक्षा परिषद में कुल 15 सीटें हो गईं, जिसमें 4 अस्थायी सीटों को जोड़ा गया, लेकिन स्थायी सीटों की संख्या पूर्ववत ही रही। तब से सुरक्षा परिषद का विस्तार नहीं हुआ है। सुरक्षा परिषद में प्रतिनिधित्व के मामले में जहां तक स्थायी सदस्यों (चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका और रूस) का सवाल है, वह आनुपातिक नहीं है। न तो भौगोलिक दृष्टि से और न ही क्षेत्रफल तथा संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों की संख्या या आबादी की दृष्टि से। इस तथ्य के बावजूद की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का 75 प्रतिशत कार्य अफ्रीका पर केंद्रित है, फिर भी इसमें अफ्रीका का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। यही कारण है कि अफ्रीकी देशों का भी एक गुट ‘सी-10’ किसी अफ्रीकी देश को इसमें शामिल करने की वकालत कर रहा है।

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