भारत की नदिया-अभिषाप या वरदान पर लेख
Answers
Explanation:
अभी एक विकट समस्या से हम सब घिरे हुए हैं। वह है पर्यावरण। नदियां हमारी कराह रही हैं। तमाम नदियों के किनारे हजारों साल से सभ्यताएं विकसित होती रही हैं, फिर आज क्यों वे नदियां सिसक रही हैं? नदियों के लिए मानव स्पर्श ही जैसे अभिशाप हो गया है। जैसे ही यह मानव सेवा के लिए अपने किनारे खोलती हैं, मानव उनको इतना दूषित कर देता है कि इन नदियों का दम घुटने लगता है।
अगर इस चीज का महत्व ना समझे तो महाविनाश के लिए रहें तैयार
अब बात आती है कि नदियां स्वच्छ कैसे हों। यह बड़ा सवाल है। उतना ही बड़ा जितना यह कि इंसान शुद्ध कैसे हो, यानी शुद्ध विचार उसमें कैसे जन्म लें और बढ़ें। देखा जाए तो दोनों आत्मा की शुद्धता से जूझ रहे हैं। बस एक अंतर है दोनों में, यह कि नदियां इस समस्या में इंसान की वजह से फंसी हैं जबकि इंसान स्वयं अपनी वजह से।
मतलब यह कि इंसान और नदियों को एक नजर से देखा जाए तब शायद हम समस्या के मूल तक पहुंचेंगे। नदियां आज समस्या में हैं क्योंकि वे निर्बाध बहने में असमर्थ हैं। उनका पानी रोका जा रहा है। सबको लगता है कि वे तो बड़े-बड़े डैम बनाकर केवल पानी रोक रहे हैं। लेकिन इससे सिर्फ पानी नहीं रुक रहा है, नदियों को शुद्ध रहने का जो वरदान मिला था, वह वरदान भंग हो रहा है। नदियां जितना बहेंगी, उतनी शुद्ध होंगी क्योंकि यह निर्बाध बहते हुए अपने अंदर डाली गई तमाम गंदगियों को बहाकर लिए जाएंगी। अगर यह पानी रुकेगा तो इसमें गाद जमा होगी। अगर नदी बहती रहती तो यह गाद रुकने ही नहीं पाता। नदियां बहकर ही शुद्ध हो सकती हैं।
अब आइए इंसान पर। जो इंसान ठहर गया, उसमें प्रदूषण आना ही है। चलता हुआ इंसान सबसे महत्वपूर्ण होता है। जो इंसान चला है, वही महामानव माना गया है। तमाम सभ्यताएं इंसान के चलने की वजह से
Answer:
Ya I help you to make your study Routine.
In which class you are.