Political Science, asked by suhailsalmani204, 4 months ago

भारत की परमाणु नीति की व्याख्या करे | (कोई चार बिन्दु )

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Answered by ranurai58
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Answer:

भारत की परमाणु नीति

वर्ष 1998 में पोखरण में दूसरे परमाणु परीक्षण के पश्चात् भारत ने स्वयं को परमाणु क्षमता संपन्न देश घोषित कर दिया, इसके साथ ही एक परमाणु नीति की आवश्यकता महसूस की गई। वर्ष 1999 में परमाणु नीति का ड्राफ्ट प्रस्तुत किया गया तथा इसके तीन वर्ष से भी अधिक समय पश्चात् सुरक्षा पर कैबिनेट समिति (CCS) ने परमाणु नीति की घोषणा की। इस नीति में सुरक्षा के लिये न्यूनतम परमाणु क्षमता के विकास की बात कही गई। भारत की परमाणु नीति का आधार 'नो फर्स्ट यूज़' यानी परमाणु अस्त्रों का पहले उपयोग नहीं करना रहा है, लेकिन हमला होने की स्थिति में कड़ा जवाब दिया जाएगा। भारत किसी दूसरे परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र के खिलाफ अपने परमाणु हथियारों का पहला इस्तेमाल कब करेगा, इसको लेकर पूर्ण स्पष्टता नहीं है।

परमाणु अप्रसार संधि

(Nuclear Non-Proliferation Treaty-NPT)

इस संधि पर वर्ष 1968 में हस्ताक्षर किये गए तथा वर्ष 1970 यह प्रभाव में आई। वर्तमान में इसके 190 हस्ताक्षरकर्त्ता सदस्य हैं। इस संधि के अनुसार कोई भी देश न वर्तमान में और न ही भविष्य में परमाणु हथियारों का निर्माण करेगा। हालाँकि सदस्य देशों को परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग की अनुमति होगी।

इस संधि के तीन प्रमुख लक्ष्य हैं: परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना, निरस्त्रीकरण को प्रोत्साहित करना तथा परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण उपयोग के अधिकार को सुनिश्चित करना।

भारत उन पाँच देशों में शामिल है जिन्होंने या तो संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं अथवा बाद में इस संधि से बाहर हो गए हैं। भारत के अतिरिक्त इसमें पाकिस्तान, इजराइल, उत्तर कोरिया तथा दक्षिण सूडान शामिल हैं।

भारत का विचार है कि NPT संधि भेदभावपूर्ण है अतः इस में शामिल होना उचित नहीं है। भारत का तर्क है कि यह संधि सिर्फ पाँच शक्तियों (अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्राँस) को परमाणु क्षमता का एकाधिकार प्रदान करती है तथा अन्य देश जो परमाणु शक्ति संपन्न नहीं हैं सिर्फ उन्हीं पर लागू होती है।

व्यापक परमाणु-परीक्षण-प्रतिबंध संधि

(The Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty- CTBT)

CTBT संधि सभी प्रकार के परमाणु हथियारों के परीक्षण एवं उपयोग को प्रतिबंधित करती है। यह संधि जिनेवा के निरस्त्रीकरण सम्मेलन के पश्चात् प्रकाश में आई। इस संधि पर वर्ष 1996 में हस्ताक्षर किये गए। अब तक इस संधि पर 184 देश हस्ताक्षर कर चुके हैं।

नो फर्स्ट यूज़ नीति (No First Use Doctrine) की प्रासंगिकता

चीन ने परमाणु परीक्षण के पश्चात् विश्व में सर्वप्रथम नो फर्स्ट यूज़ की नीति की घोषणा की थी। इसके बाद भारत ने वर्ष 2003 में इसी प्रकार की नीति की घोषणा की। भारत एवं चीन के अतिरिक्त किसी भी परमाणु संपन्न देश ने इस नीति को नहीं अपनाया। हालाँकि रूस ओर अमेरिका सुरक्षा के लिये इसके उपयोग की बात करते रहे हैं।

इस नीति का विरोध करते हुए तर्क दिया जाता है कि इससे पारंपरिक युद्ध एवं हथियारों की दौड़ में वृद्धि होगी। साथ ही यदि ऐसा देश जिसकी नीति NFU की नहीं है, हमला करता है तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि अन्य देश हमले का जवाब देने की स्थिति में हों। अतः इस नीति को व्यावहारिक नहीं माना जा सकता। वहीं इस नीति के पक्षधरों का मानना है कि फर्स्ट यूज़ की नीति परमाणु हथियारों की दौड़ को तेज कर देती है तथा विभिन्न देशों के मध्य अविश्वास में वृद्धि कर सकती है। साथ ही फर्स्ट यूज़ की नीति ऐसे देशों के लिये कारगर नहीं हो सकती जो फर्स्ट स्ट्राइक में पूर्णतः सक्षम न हों। इसके अतिरिक्त फर्स्ट यूज़ की नीति परमाणु हथियारों के साथ-साथ अन्य प्रकार की क्षमताओं के निर्माण में भी खर्च को बढ़ाती है।

नो फर्स्ट यूज़ नीति के लाभ

भारत द्वारा वर्ष 1974 तथा वर्ष 1998 में परमाणु परीक्षण किये गए। इन परीक्षणों के पश्चात् भारत को अत्यधिक आलोचना एवं प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा। लेकिन भारत ने वर्ष 2003 में नो फर्स्ट यूज़ की नीति को अपना लिया तथा विभिन्न मौकों पर इस नीति का पालन भी किया। कारगिल युद्ध में कयास लगाया जा रहा था कि यह युद्ध परमाणु संघर्ष में तब्दील हो जाएगा लेकिन भारत ने संयम दिखाते हुए पारंपरिक तरीके से ही युद्ध में विजय हासिल की। मौजूदा वक्त में परमाणु हथियारों को लेकर भारत की छवि एक ज़िम्मेदार राष्ट्र की बनी है तथा NTP पर हस्ताक्षर के बिना ही भारत MTCR (Missile Technology Control Regime), वासेनर अर्रेंजमेंट तथा ऑस्ट्रेलिया समूह का हिस्सा बन चुका है। इसके अतिरिक्त भारत NSG (Nuclear Supplier Group) की सदस्यता के लिये भी प्रयास कर रहा है। NSG समूह की सदस्यता सिर्फ उन्ही राष्ट्रों को मिल सकती है जो NPT के हस्ताक्षरकर्त्ता हैं। इसी आधार पर भारत की सदस्यता में चीन बाधा बन रहा है हालाँकि अन्य देशों के समर्थन से भारत का पक्ष सदस्यता के लिये मजबूत है। यह समूह विश्व में यूरेनियम की आपूर्ति को नियंत्रित करता है लेकिन NSG ने भारत को यूरेनियम आयात करने की छूट प्रदान की है ताकि भारत अपने असैन्य उपयोग के लिये यूरेनियम की प्राप्ति को सुनिश्चित कर सके।

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