Geography, asked by akash220578, 1 month ago

भारत की राष्ट्रीय एकता की चुनौतियों की चिंता कीजिए​

Answers

Answered by sattus222
1

Answer:

चन्द्रकान्ता शर्मा

एक युग था, जब लोग की आन, बान और शान के लिए न्यौछावर हो जाया करते थे। किन्तु आज विघटन, अलगाव तथा देशद्रोह का ऐसा दौर है, जिसमें हम अपनी राष्ट्रीयता को बिल्कुल भुला बैठे हैं? यह हुआ क्या है कि हम चन्द चाँदी के टुकड़ों तथा क्षुद्र स्वार्थो के लिए अपनी राष्ट्रीय पहचान को ही दांव पर लगा बैठे हैं? सवाल उठता है कि कैसे हो गई हमारी राष्ट्रीयता खण्ड-खण्ड?

भारतीय राजनीति का यह एक ऐसा संक्रमण काल है, जब एक साथ अनेक चुनौतियाँ हमारी राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के सामने दीवार की तरह आ खड़ी हुई है। हमारा लोकतांत्रिक ढ़ांचा एक ऐसे ढ़र्रे पर चल पड़ा है, निजी स्वार्थो ने अपने पाँव जमा लिए हैं तथा राजनीतिक व्यावसायिकता हावी होने लगी है। वोटों की राजनीति के खेल ने मतदाता को बाँटा है तथा राजनेता का कृत्य दोगला हो जाने से हम चरित्र की एक सही तस्वीर सामान्य जन के सामने प्रस्तुत नहीं कर सके हैं। इसी के परिणामस्वरूप आज भारतीय समाज में विघटन पनपा है तथा नैतिक मान्यताएँ एवं हमारे सांस्कृतिक आदर्श बिल्कुल मटियामेट हो गए हैं। राजनीतिक चक्र एक ऐसे मोड़ पर हमें ले आया है, जहाँ राष्ट्रीयता गौण हो गई है तथा आर्थिक सफलताएँ बढ़ गई हैं, ऐसी स्थिति में निःसंदेह राष्ट्रीय एकता को बनाए रखना चुनौती भरा कार्य हो गया है।

भाषा, क्षेत्रीयता, सम्प्रदाय तथा जातीय भेदभाव के नाम पर एक स्पष्ट बाँट पैदा की गई है तथा राजनीतिज्ञों ने चुनाव को जीतना ही जनसेवा का मानदण्ड मान लिया है। राजनीति कोई सेवा का कार्य नहीं, अपितु एक उद्योग बन गई है, जहाँ भ्रष्टाचार का दलदल इतना विषाल होता जा रहा है कि उससे निकलना अब असंभव-सा प्रतीत होने लगा है। आर्थिक संपन्नता तथा वैभवपूर्ण जीवन की लालसा व्यक्ति का अंतिम लक्ष्य बन गई है और इस मारामारी में हमारी राष्ट्रीय चेतना का लोप होता चला गया है। भारतीय सभ्यता और संस्कृति की जो ऐतिहासिक विरासत हमें मिली थी, उसे हमने पूरी तरह नकार दिया है तथा हमारे जीवन मूल्य आज धूल चाट रहे हैं। इन्सान में चकती जा रही संवेदना भी राष्ट्रीय एकता के लिए चुनौती बनी है। हमारी षिक्षा प्रणाली भी कम दोषी नहीं है।

Similar questions